दृष्टि मिलन के प्रथम पर्व में
दृप्त वासना नभ छू लेती
पागलमन को बहलाता सा
जग कहता नैसर्गिक सुख है I
क्या निसर्ग सम्भूत विश्व में
क्या स्वाभाविक और सरल क्या
वाग्जाल के छिन्न आवरण
में मनुष्य की दुर्बलता है I
बुद्धि दया की भीख मांगती
ह्रदय उपेक्षा से हंस देता
मानव ! तेरी दुर्बलता का
इस जग में उपचार नहीं है I
संस्कार है गत जन्मो का
या फिर है अँधा आकर्षण
छल भी नहीं न है सम्मोहन
मनुज हृदय का पाप प्रेम है I
[मौलिक व् अप्रकाशित ]
Comment
आशीर्वाद ? नाः नाः .. आदरणीय, सादर सहयोग कहें.
आपको प्रतिक्रिया-रचना रोचक लगी, इसका आभार.
शुभ-शुभ
महनीया प्राची जी
आप स्वयं विशेषज्ञा हैं i आपकी संस्तुति परम तोष प्रदान करती है i सादर i
आदरनीय निकोर जी
आपसे आशिर्वाद मिलता है तो मन सावन सा लहराने लगता है i सादर i
आदरनी सौरभ जी
आपने प्रेम को अपनी कविता में इतना सुन्दर परिभाषित किया कि मै निःशब्द हूँ i आप बेजोड़ है श्रीमन i आपका आशीर्वाद सदा मिले i
प्रेम के बाह्य स्वरुप के अंतर्मन को उद्वेलित करते प्रारूप पर मनस वृत्तियों की खूब एनालिसिस करके ये प्रवहमान रचना प्रस्तुत हुई है...
बहुत खूबसूरत
हार्दिक बधाई आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सुन्दर बिम्ब, सुन्दर भाव, सुन्दर शिल्प .... सभी कुछ है आपकी इस कविता में। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी
कोमल पल के न्यून भाग में
जिन शुभ भावों को मन जीता
उस ही के सम्मोहन में तन
नत होता है, रत होता है
देह धर्म के साधन के हित
माध्यम मात्र यदि माने तो
संयोजन ही मूल आचरण
सदा सनातन अनुभव कहता
यही भाव है, मोद यही है
यही उर्ध्व आचार सही है
यही प्रेम का अभिनव रूपक
इसके इतर कहाँ कुछ संभव ?
तन की सिहरन से आवेशित
मूढ़ मनुज हो यदि उद्वेलित
नहीं कहो वह प्रेमपगा है,
वह तो पाप-श्राप जीता है..
आदरणीय गोपालनारायणजी, आपकी प्रस्तुति के आलोक में मैंने प्रेम के सात्विक स्वरूप को शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है. मनुष्य का बाह्यकरण प्रेम की भौतिक प्रक्रिया के रुपायित होने का कारण है, नकि प्रेम के सत-चित-आनन्द स्वरूप का प्रवर्तक !!
शैली और विन्यास के तौर पर आपकी रचना से मुझे हरिऔंधजी का प्रिय-प्रवास की स्मृति हो आयी. उनकी मात्रिकता और गेयता निर्वहन करती छन्दबद्ध अतुकान्त रचनाएँ ! आपने मात्रिकता का खूब निर्वहन किया है.
बधाई आदरणीय, बधाई..
सादर
जीतू जी
आपका आभारी हूँ i
जवाहर लाल जी
आपके उत्साहवर्धन का आभारी हूँ i
पाठक जी
आपका हार्दिक आभार i
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