For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुरेश रात-दिन कितनी भी शरीर-तोड़ मेहनत कर ले, अपनी पत्नि रजनी और दोनों बच्चों के खर्च के साथ-साथ मोबाईल, मोटर-साइकिल,मकान का किराया सब कुछ वहन नहीं कर सकता. अब पेट काटकर धीरे-धीरे अपना घर बनाना शुरू तो कर दिया पर कभी सीमेंट ख़त्म, तो कभी लोहा.

लेकिन.. जब से सुरेश से कहीं ज्यादा कमाने वाले मित्र, अशोक का उसके यहाँ आना-जाना शुरू हुआ है, तब से घर का काम दिन दोगुना -रात चौगुना चल रहा है. आजकल तो सुरेश अपने घर के बंद दरवाजे के बाहर अशोक के जूतों को देख, अपने नए बन रहे घर कि ओर चला जाता है..

     

जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)  

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 12:01pm

//अगर मुझसे इस सच को लघुकथा का रूप देकर, मंच पर साझा करने  में कोई अभद्रता हुई है तो मैं शर्मिंदा हूँ. आपके मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूँ //

क्या जितेन्द्रजी, आप भी ?

भाई, मैं ऐसी प्रतिक्रियाएँ तब देता हूँ जब प्रस्तुति के तथ्य और शिल्प पर कहने के लिए कुछ नहीं होता. सीधा कथ्य पर चर्चा ! और, सही कहिये तो कथ्य ने झिझोड़ दिया. 

खुश रहिये और मेहनत करते चलिये. अब आप पर महती दायित्व है. 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:08am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , दिल और दिमाग दोनों पर बहुत करारा चोट किया है आपने ! सोचने को विवश करती ,सुन्दर लघु कथा के लिये बधाइयाँ ।

Comment by Ravi Prabhakar on August 5, 2014 at 10:51am

प्रिय मित्रवर,
    प्रस्तुत लघुकथा का सूक्ष्म एवं संजीदा व्यंग्य पाठक की मानसिकता में किसी महीन कांटे की चुभन के अहसास जैसा है जो उसे अंदर तक झंझोर देता है। यही सूक्ष्म एवं संजीदा व्यंग्य पाठक को लघुकथा पढ़ने के बाद बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करता है। आपकी लघुकथाओं की धार बहुत तीखी होती जा रही है। भविष्य के लिए शुभकामनाएं।

Comment by savitamishra on August 5, 2014 at 9:49am

झकझोरती रचना ...कहा जा रहे है हम ..नींव ही नये मकान की घटिया मानसिकता संस्कार पर रखी गयी है तो मंजिल सुकून देने वाली कैसे बन सकती है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2014 at 7:03am

माफ़ कीजियेगा आदरणीय सोरभ जी, मैंने उसी समाज में से इस घिनोने सच को उठा लाया हूँ. घिन तो मुझे भी आई परन्तु क्या करता...? सच तो सच ही है न.

अगर मुझसे इस सच को लघुकथा का रूप देकर, मंच पर साझा करने  में कोई अभद्रता हुई है तो मैं शर्मिंदा हूँ. आपके मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 1:09am

क्या जी !?  हम सभी किस समाज के सदस्य हैं !?? .. घिन आती है, है न ?

इस कथा को कैसे शब्द मिले हैं !

शुभ-शुभ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 11:11pm

आदरणीया महिमा जी. लघुकथा पर आपकी सराहना से बहुत ख़ुशी मिली, प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ.

आज के समय में अपने सपनो और सुखों के लिए शायद किसी-किसी को संस्कार और नैतिकता के बारे में सोचने का भी वक्त नही है. बहुत जल्दबाजी में लगा है आज का इंसान.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 11:05pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी. लघुकथा पर जब तक आपका अनुमोदन न मिले, बहुत अधूरापन सा लगता है. :-)))

आपके विचार से मैं सहमत हूँ. आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 11:00pm

जी, आदरणीय प्रदीप जी. आज के समय में किसी भी बात या घटना को नही नकारा जा सकता.लघुकथा पर आपकी उपस्थिति से बहुत मनोबल मिला, आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 10:57pm

आदरणीया राजेश दीदी, रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभार. इंसान गर्त में गिरे या ना गिरे, यहाँ शायद हम किसी पर दोष मढ़े या न मढ़े. किन्तु आज का समय भी तो अपेक्षाओं पर ही टिका हुआ है.

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
19 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service