"गीत"
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श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
आ रहे महबूब मेरे
दिल कहे श्रृँगार कर ।
द्वार पर कलियाँ बिछा कर
बावरी सत्कार कर ।
प्यार पर सब वार कर
-दुल्हन सदृश अभिसार कर ।
अब गले लग प्राण प्रिय से
डर भला किस बात का |
श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
चाहती पलकें भी बिछना
हर कदम पर प्यार से |
कह रही हैं धडकनें भी
नाथ आ अब द्वार पे |
खिल गई चम्पा निशा में
भाव तीव्र सत्कार रख |
झुक गईं सब डालियाँ भी
पुष्प हर सिंगार का ||
श्याम घन नभ सोहते ज्योँ ग्वाल दल घनश्याम का ।
चंचला यमुना किनारे नृत्य रत ज्योँ राधिका ||
(मौलिक अप्रकाशित )
Comment
अति सुन्दर रचना!
सादर धन्यवाद ! गीत की सराहना के लिए laxman dhami जी नमन
आ० छाया जी, इस भावपूर्ण गीत के लिए हार्दिक बधाई .
सराहना कर उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार आपका जीतेन्द्र गीत जी सादर नमन !
संवेदनाओं को बहुत सुंदरता से संजोया है आपने. बधाई आपको आदरणीया छाया जी
हार्दिक धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी सादर नमन !
छाया जी
आपका गीत भावपूर्ण है i इसमे वह संवेदना है जो आज के दिनों में मिट्ती जा रही है i
सादर धन्यवाद dr. vijai shanker जी गीत की सराहना के लिए नमन !
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