दूर देश ब्याही बहिन, बाबुल हुआ उदासl
भाई लेने चल दिया, सावन आया पासll
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बहना गहना डाल के, ले हाथों में थालl
भाई के घर आ गयी,तिलक मांडने भालll
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हाथों में मंहदी लगा, बहना है तैयार l
बाबुल के अँगना बही, सुखद नेह की धार ll
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भाई बहना मिल रहे, खुश माँ का संसार l
बाबुल के मन गिर रही, सावन की बौछार ll
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कच्चे धागे में बंधा, भ्रात भगनि का प्यार l
अनुपम सकल जहान में, राखी का त्यौहार ll
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राखी बंधन प्रेम का, होता है अनमोल l
देकर अपनी जान भी, चुका सका क्या मोलll
**हरि वल्लभ शर्मा दि.10.08.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय हरिबल्लभ जी ,
इस सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई .
अति सुंदर दोहावली. बहुत ही सुंदर भाव ,बधाई आपको आदरणीय हरिबल्लभ जी
इस पावन पर्व के प्रति कोमल भाव अच्छे उतरे हैं आपकी रचना में। हार्दिक बधाई, आ० हरिवल्लभ जी
आदरणीय हरि भाईजी, दोहों के विषम चरणन्त के लिए मात्र तीन लघु या रगण आदि के अलावा ’शब्द-कल’ को भी देखना आवश्यक है. जिनके अनुसार उच्चारण के क्रम में शब्दों में अक्षरों पर आवश्यक भार पड़ता है. इसकी चर्चा मैं आपसे बातचीत के क्रम में कर चुका हूँ.
आप आवश्यक समझें तो तदनुरूप परिवर्तन कर लें. अन्यथा ’पहन के’ से विषम चरणान्त होने से ’पहन’ के ’हन’ पर शब्दभार पड़ता है जो कि एक गुरु का आभास कराता है और फिर ’के’ आता है. यानि दो गुरुओं की आभासी उपस्थिति वाचन में दोष तो उत्पन्न करेगी ही. यदि ऐसा होना मान्य हो जाय, तो फिर दोहों के विषम चरणान्त दो गुरुओं से क्यों न हों ?
है न ?
सादर
आदरणीय ram shromani pathak जी आपका स्नेह मिला बहुत आभार आपका.
आदरणीय Saurabh Pandey जी आपने दोहों पर अपनी सूक्ष्म द्रष्टि से मेरे दोष अवगत कराये दरअसल प्रथम चरण के अंत में तीन लघु आ रहे थे इस कारण मैंने लिए थे ..अब आपके सुझाव अनुसार परिवर्तित कर रहा हूँ..टंकण त्रुटी भी सुधार रहे हैं सादर आभार आपका.
आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका स्नेह मिला आपका बहुत आभर ..सादर.
आदरणीया rajesh kumari जी आपका सुलभ स्नेह एवं परामर्श मेरे लिए बहुमूल्य है..आपके सुझाव अनुरूप परिवर्तन किया जाता है...सादर आभार आपका.
आदरणीय Dr. Vijay Shanker जी आपका रचना पर स्नेह मिला बहुत आभार आपका...
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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