मैंने चुप की आवाज़ सुनी !
जबसे गूँगे से बात करी !!
वर्षों तक देखा है उनको !
तब जाके ये तस्वीर बनी!!
चोर-चोर मौसेरे भाई!
उनकी आपस में खूब छनी!!
कोई कैसे घायल ना हो!
वो थी ही मृग सावक नयनी !!
बीवी साड़ी माँग रही थी!
मेरी तो तनख़्वाह कटनी!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
अमूल्य सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..... सादर
’बात करी’ को हम न पचा पायेंगे. कारण, यह व्याकरण सम्मत नहीं है. बाकी भी बस ठीक है.
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी सादर
आ. राम भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ | अंतिम शे र बात कहा नहीं पाया है , और फ्लो भी कम है , देखिएगा |
हार्दिक आभार आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी!
हार्दिक आभार आदरणीया Meena Pathak जी!
हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी!
बहुत सुन्दर
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