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जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में
दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में
मैं नाम लौहे दिल पे यूँ लिखता गया तेरा
इसके सिवा रहा नहीं कुछ इख़्तियार में
वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर
पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में
तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा
वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में
खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता
बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में
किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”
हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में
लौहे दिल= हृदय पटल
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
शिज्जू भाई
नख से सिख तक सुन्दर गजल i
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