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अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
मुहब्बत के दरीचों से जरा सी धूप मिल जाती
छतों की झिरकियाँ पटती मकाँ उनके सुधर जाते
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते
ये कैसे फैसले मालिक कँही सूखा कँही जल-थल
न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते
सदाक़त= सच्चाई
जिया---रोशनी/किरण /चमक
ख़ुर्शीद—सूर्य
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० डॉ. आशुतोष जी ,जब आप जैसे गंभीर पाठक रचना को मिलते हैं तो रचना स्वतः मुकम्मल हो जाती है ,इस होंसलाफ्जाई का और मेरी कलम में नव ऊर्जा भरने का तहे दिल से शुक्रिया सादर .
आदरणीया राज जी ..आप की ग़ज़लों की एक अलग ही बिशेषता होती है ..हमेशा की तरह ये ग़ज़ल भी मुझे बेहद भाई ..कारण इस बार भी नूतन प्रयोग ताजगी और पाठको को सोच का एक आया आयाम देना है ..आपको ढेर सारी बधाई के साथ सादर
आ० विजय निकोर जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका |
सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी।
प्रिय जितेन्द्र भैया,आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह वर्धक होती है मेरे लिए, आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से आभारी हूँ .
प्रिय सविता मिश्रा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका |
बहुत ही खुबसूरत गजल आदरणीया राजेश दीदी. हर शे'र तारीफ़ ए काबिल, दिली बधाई स्वकार कीजियेगा
bahut khubsurat didiji .saadr namste
आ० संतलाल करुण जी ,आप से दाद पाकर ग़ज़ल सार्थक हुई| तहे दिल से आभार आपका सादर.
आ० श्याम नारायण वर्मा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई हार्दिक आभार आपका.
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