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अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
मुहब्बत के दरीचों से जरा सी धूप मिल जाती
छतों की झिरकियाँ पटती मकाँ उनके सुधर जाते
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते
ये कैसे फैसले मालिक कँही सूखा कँही जल-थल
न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते
सदाक़त= सच्चाई
जिया---रोशनी/किरण /चमक
ख़ुर्शीद—सूर्य
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
प्रसंशनीय,आदरणीय राजेश कुमारी जी , बहुत बहुत बधाई।
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