" कितने गंदे लोग हैं , छी , सब तरफ गन्दगी ही गन्दगी , उधर किनारे चलते हैं " कहते हुए लड़का बड़े प्यार से हाथ पकड़ कर उसे किनारे ले गया और आँखों में आँखें डाल कर खो गए दोनों |
" साहब मूंगफली ले लो , टाइम पास " |
" ठीक है , दे दो " , और फटाफट पैसे देकर रुखसत किया उसको |
पता ही नहीं चला , कब मूंगफली ख़त्म हो गयी और अँधेरा हो गया | दोनों उठ कर चलने लगे |
लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आभार डॉ आशुतोष मिश्राजी..
आभार गिरिराज भण्डारीजी ..
अच्छी सीख देती सार्थक लघु कथा ...बहुत बहुत बधाई आपको
गंदगी फैलाने वालो को कोसते हुए सब साफसुथरी जगह की तलाश में रहते है, मगर स्वयं ही गंदगी फैलाते समय अपने अंतस को नहीं टटोलते | ऐसे में लड़की का छिलके उठाने पर आपनी गलती का अहसास हुआ जो किसी तमाचे का कम नहीं | यही बात
इस लघु कथा का सार्थक सन्देश भी है | बहुत बहुत बधाई
अच्छी-भली जगह को अक्सर लोग ऐसे ही गन्दा करते हैं. अच्छे विन्दु को उठाया है आपने.
प्रस्तुति हेतु बधाई
आदरणीय विनय जी इस सुंदर संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सादर ..
अच्छी लघुकथा , आदरणीय बधाई इस रचना के लिए |
आभार आपका जवाहरलाल जी , जो आपने समय दिया कहानी पर | दरअसल लड़का कुछ ही देर पहले गन्दगी के लिए सबको कोस रहा था और खुद मूंगफली के छिलके वहीँ फैलाकर ( गन्दगी करके ) चलने लगता है | लेकिन लड़की को गन्दगी फैलाना उचित नहीं लगता और वो झुककर छिलके उठा लेती है ताकी कहीं डस्टबिन में डाल सके | इसी को प्रतीक रूप में मैंने लिखा है कि लड़के को अपनी हरक़त पर लड़की का तमाचा लगता महसूस हुआ |
लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया | - मुझे समझ में नहीं आया, कृपया समझाने का प्रयास करेंगे? आदरणीय श्री विजय कुमार सिंह जी!
आभार सविता मिश्राजी..
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