चले आओ कभी आगोश में,
सब छोड़ के जालिम!
ये रातें कट रही तन्हा,
कि तेरी याद आती है।
बताऊँ फिर तुझे कैसे,
दिल-ए-नादाँ की बातें!
मैं खुद में हो गया आधा,
कि तेरी याद आती है।
कभी रहती थी पलकों पे,
हुस्न-ए-नूर बनकर तुम!
वही बनके तूँ फिर आजा,
कि तेरी याद आती है।
समय बदला, फिजा बदली,
अभी ये दिल नही बदला!
समय के साथ तूँ बदली,
कि तेरी याद आती है।
सोचता हूँ समेटूँगा,
तेरी यादों के लम्हों को!
मगर फुर्सत नही मिलती,
कि तेरी याद आती है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
""आदरणीय जितेन्द्र जी, सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! ""
"आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम ..
कोशिश रहेगी कि ये मिठास कभी कम ना हो।
उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए ह्रदय से आभार|
"आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर प्रणाम ...
आशीर्वाद दिजिये कि भविष्य में बहुत सी सुन्दर रचनायें कर सकूं....
उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
""आदरणीय laxman dhami जी, उत्साह वर्धन व प्रशंसा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।""
भविष्य में प्रयासरत रहेंगे कि और भी सुन्दर रचनायें हों।
आदरणीय श्याम नरायन वर्मा जी, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! ""
बेहद सुंदर रचना आदरणीय पवन जी. दिल को छू जाते भाव. बधाई स्वीकारें
भावाभिव्यक्ति में मिठास है. प्रस्तुति के लिए बधाई, पवनजी
प्रयासरत रहें.
पवन जी
अंतिम बंद ने मन को छु लिया , सुन्दर
कभी रहती थी पलकों पे,
हुस्न-ए-नूर बनकर तुम!
वही बनके तूँ फिर आजा,
कि तेरी याद आती है।
आदरणीय पवन कुमार जी सुंदर रचना हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. " |
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