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ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

घर से बाहर तो निकल कर देखिये

ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये

 

आपको अंधा न कर दे वो चमक

शम्स को थोड़ा सँभल कर देखिये

 

आजमाया है मुझे ही अब तलक

इक दफा खुद को बदल कर देखिये

 

चार सू बस आप ही होंगे जनाब

शम्अ की मानिन्द जल कर देखिये

 

आसमाँ के है मुकाबिल हस्ती क्या

देखना हो तो उछल कर देखिये

 

तर्क़े ताल्लुक तो बहुत आसान है

कालिबे निस्बत में ढल कर देखिये

 

तर्क़े ताल्लुक= रिश्ता तोड़ना

कालिबे निस्बत में= रिश्तों के साँचे में

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on August 24, 2014 at 10:59pm

बहुत शानदार! हर शेर उत्तम! बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय शिज्जु जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:46pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपके जैसे सक्रिय पाठकों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सतत् लिखने को प्रेरित करती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:45pm

आदरणीय डॉ विजय सर आपका तहेदिल से शुक्रिया स्नेह बनाये रखें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:44pm

आदरणीय सौरभ सर आपका तहेदिल से शुक्रिया आपके अनुमोदन से उत्साह बढ़ा है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 24, 2014 at 12:19pm

क्या बात है! बहुत खूब गजल कही आपने आदरणीय शिज्जू जी. एक-एक शे'र तीर के समान

आपको अंधा न कर दे वो चमक

सूर्य को थोड़ा सँभल कर देखिये............बहुत सटीक

 

आजमाया है मुझे ही अब तलक

इक दफा खुद को बदल कर देखिये........बहुत सुंदर बात, दिली बधाई स्वीकारें

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 11:49am
आजमाया है मुझे ही अब तलक
इक दफा खुद को बदल कर देखिये ॥
बहुत सुन्दर , हर शेर बहुत सुन्दर , बधाई आदरणीय शिज्जु शकूर जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 24, 2014 at 11:42am

बहुत खूब !

हर शेर उम्दा हुआ है, भाईजी.  हर शेर पर ढेर सारी दाद .. !

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