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हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये
ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये
जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये
आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो
मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”
आईने देख कर मुझे अंजान बन गये
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय करुण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय खुर्शीद जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय शिज्जु शकूर जी,
सारगर्भित ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ --
"जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये"
इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये
आदरणीय शकूर साहब उम्दा अशहार हुये हैं ,सादर अभिनन्दन
आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार मेह्र का वज्न होगा 21
चम2 के2 तो1 मेह्र21 बन2 ग1ये1 जो2 आ2स1 मा2न1 की2
सादर,
आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय़ डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार
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