For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में-ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में

 

मैं नाम लौहे दिल पे यूँ लिखता गया तेरा

इसके सिवा रहा नहीं कुछ इख़्तियार में

 

वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में

 

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में

 

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में         

 

किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”                                                                                                                               

हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में

 

लौहे दिल= हृदय पटल               

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:12pm

मेरी रचना को समय देने के लिये आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया। मैं आप सभी से माफी चाहता हूँ कि व्यस्तता के चलते मंच पर सक्रिय नहीं हो सका। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 12:21am

वाह ! बहुत खूब !

Comment by Santlal Karun on August 20, 2014 at 6:22pm

आदरणीय शकूर जी,

सधी हुई सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में"

Comment by विजय मिश्र on August 20, 2014 at 3:32pm
"खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता
बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में |" --- बहोत उम्दा पैगाम दिया , पूरी गजल बेहद खूबसूरत |बधाई शिज्जू भाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 19, 2014 at 10:05pm

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में  ---बहुत खूब 

 

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में -----शानदार

सुन्दर ग़ज़ल हुई है शिज्जू भैया दाद कबूलिये         

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2014 at 8:08am

वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में

 

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में  ----------  इन दो खूब सूरत अश 'आर  और ग़ज़ल के लिए आपको दिली बधाइयाँ |

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2014 at 9:44pm

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में...........बेहद सुंदर, दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय शिज्जू जी

 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:14pm

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में     बहुत खूब!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:36am

किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”                                                                                                                               

हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में

बहुत खूब शिज्जु भाई , इस बेहतरीन ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 9:40pm

बहुत खूब ... वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service