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कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का
गरीब बच्चों से पाठ शाला न छीनिए
जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं
उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए
पुछल्ला ---
यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा
कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ
नक़ाबए सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
सुन्दर गज़ल ....
हर लाईनें अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं
सादर बधाई.....
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