‘’बहुत खुश दिख रही हो लाजो” गाँव से आई लाजो की सहेली कनिया ने कहा|
“हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा बहू काम पर चले जाते हैं नौकरानी सब काम कर जाती है बस घर में महारानी की तरह रहती हूँ” लाजो ने जबाब दिया|
कुछ देर की शान्ति के बाद फिर लाजो बोली”ये सुख तेरा ही तो दिया हुआ है उस दिन न तू उस बुढ़िया से पिंड छुडाने का आइडिया देती तो आगे भी न जाने कितने सालों तक मुझे उसकी गंद उठानी पड़ती और मेरा रोहित दादी की सेवा के लिए मुझे वहीँ सड़ने के लिए छोड़े रखता, नरक बनी हुई थी मेरी जिंदगी”|
किसी काम के लिए अन्दर आते हुए रोहित के कानों में इस वार्तालाप ने मानो तेज़ाब उड़ेल दिया हो|उलटे पैरों वापस लौट गया|
कुछ दिन बाद रोहित माँ से बोला”माँ गाँव घूम कर आते हैं वैसे भी दादी को गुजरे काफी दिन हो गए हमे जाना चाहिए सामान पैक करो कुछ दिन रह कर आयेंगे” |
अगले दिन माँ के साथ बेटा बहू रेलवे स्टेशन पँहुच कर माँ को बर्थ पर बैठाकर किसी काम के लिए बाहर आते हैं ट्रेन चल पड़ती है. रोहित भागते-भागते खिड़की से माँ को एक ख़त पकड़ा देता है|
घबराई हुई लाजो ख़त खोलकर कँपकपाते हाथों से पढ़ती है –“माँ गाँव का घर पूरा किराए पर चढ़ा है केवल एक कमरा अपने पास है ‘दादी का बिना खिड़की वाला कमरा’ आप उसमे रह सकती हैं ,कैसे रहेंगी?ये आइडिया कनिका आंटी दे देगी,
अगले महीने मैं और आपकी बहु अमेरिका चले जायेंगे हमारी आज की ये आखिरी मुलाकात थी ....बस इससे अधिक सजा मैं आपको नहीं दे सकता आपका बेटा हूँ न!!!
और हाँ.. एक बात और जब मैं दादी के मुँह में गंगा जल डाल रहा था तो उनकी नीली जीभ देख कर मुझे कुछ देर के लिए शक़ हुआ था ,किन्तु आप पर नहीं आप तो मेरे लिए भगवान् सामान थी...पर अब नहीं” !!!!.
--------------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० विजय निकोर जी ,लघुकथा के दर्द को महसूस कर अनुमोदन करने के लिए दिल से आभार आपका.
मैं अपने जीवन में अपनी पूज्य माँ के प्रति किसी संबंधी का हृदयविदारक दुर्व्यवहार देख चुका हूँ, अत: आपकी लघुकथा पढ़ कर आँखे नम हो गईं।
इतनी प्रभावशाली कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।
प्रिय वंदना जी ,इसमें कोई हैरत नहीं की आप जैसी संवेदन शील रचना कार को लघु कथा ने प्रभावित किया ,हम लेखक लोगों की कलम अपने आस पास या खुद अपने अनुभव से जन्मी संवेदनाओं की स्याही पीकर ही तो चलती है,दिल से शुक्रिया आपका. मेरा लिखना सार्थक हुआ |
आ० सौरभ जी,लघु कथा पर आपका अनुमोदन पाकर उत्साहित हूँ हार्दिक आभार आपका |
....बस इससे अधिक सजा मैं आपको नहीं दे सकता आपका बेटा हूँ न!!!
झकझोरती लघुकथा आदरणीया राजेश दी
कथा का कथ्य अपने आप में विचित्र तो नहीं विशिष्ट अवश्य है.
’जैसा करो, वैसा भरो’ को शब्दबद्ध करने का हुआ प्रयास, आदरणीया राजेशकुमारीजी, एक अलग ही दुनिया में ले जाती है.
आ० श्याम नारायण जी ,आपको लघु कथा पसंद आई हार्दिक आभार आपका.
सुंदर लघु कथा के लिए बधाई |
विनय कुमार जी,आपने सही कहा ,जैसा करोगे वैसा ही भरोगे ..कई बार बच्चे भी सीख दे जाते हैं ...कहानी के अनुमोदन के लिए दिल से आभार.
बहुत बढ़िया लघुकथा , बोया पेड़ बाबुल का , आम कहाँ से खाय | बधाई राजेश कुमारी जी ..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online