For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘’बहुत खुश दिख रही हो लाजो” गाँव से आई लाजो की सहेली कनिया ने कहा|

“हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा बहू काम पर चले जाते हैं नौकरानी सब  काम कर जाती है बस घर में महारानी की तरह रहती हूँ” लाजो ने जबाब दिया|

कुछ देर की शान्ति के बाद फिर लाजो बोली”ये सुख तेरा ही तो दिया हुआ है उस दिन न तू उस बुढ़िया से पिंड छुडाने का आइडिया देती तो आगे भी न जाने कितने सालों तक मुझे उसकी गंद  उठानी पड़ती और मेरा रोहित दादी की सेवा के लिए मुझे वहीँ सड़ने के लिए छोड़े रखता, नरक बनी हुई थी मेरी जिंदगी”|

किसी काम के लिए अन्दर आते हुए रोहित के कानों में इस वार्तालाप ने मानो  तेज़ाब उड़ेल दिया हो|उलटे पैरों वापस लौट गया|

कुछ दिन बाद रोहित माँ से बोला”माँ गाँव घूम कर आते हैं वैसे भी दादी को गुजरे काफी दिन हो गए हमे जाना चाहिए सामान पैक करो कुछ दिन रह कर आयेंगे” |

अगले दिन माँ के साथ बेटा बहू रेलवे स्टेशन पँहुच कर माँ को बर्थ पर बैठाकर किसी काम के लिए बाहर आते हैं ट्रेन चल पड़ती है. रोहित भागते-भागते खिड़की से माँ को एक ख़त पकड़ा देता है|

 घबराई हुई लाजो ख़त खोलकर कँपकपाते हाथों से पढ़ती है –“माँ गाँव का घर पूरा किराए पर चढ़ा है केवल एक कमरा अपने पास है ‘दादी का  बिना खिड़की वाला कमरा’ आप उसमे रह सकती हैं ,कैसे रहेंगी?ये आइडिया कनिका आंटी दे देगी,

अगले महीने मैं और आपकी बहु अमेरिका चले जायेंगे हमारी आज की ये आखिरी मुलाकात थी ....बस इससे अधिक सजा मैं आपको नहीं दे सकता आपका बेटा हूँ न!!!

और हाँ.. एक बात और जब मैं दादी के मुँह में गंगा जल डाल रहा था तो उनकी नीली जीभ देख कर मुझे कुछ देर के लिए शक़ हुआ था ,किन्तु आप पर नहीं आप तो मेरे लिए भगवान् सामान थी...पर अब नहीं” !!!!.

--------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2014 at 5:47pm

आ० विजय निकोर जी ,लघुकथा के दर्द को महसूस कर  अनुमोदन  करने के लिए दिल से आभार आपका. 

Comment by vijay nikore on September 4, 2014 at 4:07pm

मैं अपने जीवन में अपनी पूज्य माँ के प्रति किसी संबंधी का हृदयविदारक दुर्व्यवहार देख चुका हूँ, अत: आपकी लघुकथा पढ़ कर आँखे नम हो गईं।

इतनी प्रभावशाली कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2014 at 10:11am

प्रिय वंदना जी ,इसमें कोई हैरत नहीं की आप जैसी संवेदन शील रचना कार को लघु कथा ने प्रभावित किया ,हम लेखक लोगों की कलम अपने आस पास या खुद अपने अनुभव से जन्मी संवेदनाओं  की स्याही पीकर ही तो चलती है,दिल से शुक्रिया आपका. मेरा लिखना सार्थक हुआ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2014 at 10:06am

आ० सौरभ जी,लघु कथा पर आपका अनुमोदन पाकर उत्साहित हूँ हार्दिक आभार आपका | 

Comment by vandana on September 4, 2014 at 7:06am

....बस इससे अधिक सजा मैं आपको नहीं दे सकता आपका बेटा हूँ न!!!

झकझोरती लघुकथा आदरणीया राजेश दी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2014 at 4:18am

कथा का कथ्य अपने आप में विचित्र तो नहीं विशिष्ट अवश्य है.

’जैसा करो, वैसा भरो’ को शब्दबद्ध करने का हुआ प्रयास, आदरणीया राजेशकुमारीजी, एक अलग ही दुनिया में ले जाती है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2014 at 11:43am

आ० श्याम नारायण जी ,आपको लघु कथा पसंद आई हार्दिक आभार आपका. 

Comment by Shyam Narain Verma on September 2, 2014 at 11:18am
सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2014 at 9:53am

विनय कुमार जी,आपने सही कहा ,जैसा करोगे वैसा ही भरोगे ..कई बार बच्चे भी सीख दे जाते हैं ...कहानी के अनुमोदन के लिए दिल से आभार.  

Comment by विनय कुमार on September 1, 2014 at 11:46pm

बहुत बढ़िया लघुकथा , बोया पेड़ बाबुल का , आम कहाँ से खाय | बधाई राजेश कुमारी जी ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service