चार पांच किक के बाद किसी तरह स्कूटर स्टार्ट हुई मास्साहब की | पसीना पोंछते हुए जैसे ही बैठने को हुए कि एक गाड़ी आकर रुकी | गाड़ी से उतरकर उस नौजवान ने मास्साहब के पैर छुए और एक पैकेट उन्हें देने लगा |
वो अभी सोच ही रहे थे कि नौजवान बोला " सर , आपकी शिक्षा का ही सुपरिणाम है कि आज मैं कुछ बन पाया हूँ , आज के दिन इंकार मत करिये " | मास्साहब ने पलट कर एक नज़र दरवाजे पर खड़ी अपनी पत्नी की तरफ देखा और विनम्रता से पैकेट लौटाते हुए बोले " तुम्हारे आदर से बड़ी भेंट कुछ और नहीं हो सकती , जीवन में और तरक्की करो " |
पत्नी को अपने कहे शब्द " क्या कमाया है आपने आजतक " का उत्तर मिल गया था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आभार गिरिराज भंडारी जी..
आभार अन्नपूर्णा बाजपेईजी..
आभार डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तवजी..
यही सच्चा गुरु- शिष्य सम्बन्ध है , यही होना भी चाहिए , पर अब दोनों अपनी अपनी जगह से च्युत हैं , किसको कौन दोष दे | आपको सुन्दर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई |
वाह !!! अति सुंदर , लघु कथा बहुत बधाई
आदरणीय विनय जी
मुझे अपने शोध-गुरु डा0 पाण्डेय रामेन्द्र की याद आ गयी i उनका निस्पृह व्यक्तित्व मुझे हमेशा प्रेरणा देता है i कालेज के दोस्तों में बात हो रही थी i सब अपने अपने गुरु की प्रशंसा में कसीदे पढ़ रहे थे i किसी ने कहा मेरे गुरु तो गंगा की भांति पवित्र हैं i दूसरे ने उससे पूछा और रामेन्द्र सर ? छात्र ने जवाब दिया- अरे वह तो अमृत है i उनसा कोई नहीं i ऐसे है मेरे गुरु i मै उन्हें यहाँ प्रणाम करता हूँ i सादर i
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