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रहे अरमाँ अधूरे जो, लगे मन को सताने फिर
चला है चाँद दरिया में हटा घूँघट नहाने फिर /1/
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नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर /2/
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उन्हें मौका मिला है तो, करेंगे हसरतें पूरी
सितारे नीर भरने के गढे़ंगे कुछ बहाने फिर /3/
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छुपा सकता नहीं कुछ भी खुदा से जब करम अपने
रखूँ मैं किस से पर्दा तब बता तू ही जमाने फिर /4/
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अगर देने नहीं हैं जब कभी ये इश्क को तू ने
जमा तू हुश्न करता क्यों जवानी के खजाने फिर /5/
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न गीले यूँ करो दामन लगा है शीत का मौसम
कहाँ से धूप लाओगे पड़ेंगे जब सुखाने फिर /6/
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बहुत नफरत के किस्से सुन थके हैं कान अपने भी
करें कुछ प्यार की बातें मधुर सी आ जमाने फिर /7/
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( रचना 12 फरवरी 2012 )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भाई गिरिराज जी आपकी उपस्थिति से गजल का जो मान बढ़ा है उसके लिए हार्दिका आभार ।
आदरणीय भाईगोपाल नारायन जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई रामसिरोमणि जी गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई आशुतोष जी आपको गजल पसंद आई यह मेरे लिए प्रशन्नता का विषय है । स्नेह और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर -- आदरणीय लक्ष्मण भाई बढ़िया ग़ज़ल और इस शे र के लिए दिली बधाइयाँ |
धामी जी
बहुत सुन्दर i नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर /2/
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उन्हें मौका मिला है तो, करेंगे हसरतें पूरी
सितारे नीर भरने के गढे़ंगे कुछ बहाने फिर /3/
न गीले यूँ करो दामन लगा है शीत का मौसम
कहाँ से धूप लाओगे पड़ेंगे जब सुखाने फिर //...आदरणीय लक्ष्मण जी बेहतरीन ग़ज़ल ..हर शेर उम्दा ..यह शेर मुझे बेहद पसंद आया ढेर सारी बधाई के साथ सादर
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