For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सच कहता हूँ यारो मै - ( गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2222    2222    2222    222
*******************************
रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों  को  मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
अपना  हो  या  बेगाना  हो  सुख  में  ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों  से  जादा  मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर  मौसम  को  अपना  कहना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दौलतदां हो इक सिक्के की कीमत को मत बिसराना
हर  सिक्के  को अपना रखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
जब  मौसम  हो हरियाली का चाहे छुपना काटों सा
पतझड़ में फूलों सा खिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
मंदिर  में  चढ़ने  से  जादा  चाहे  जो चढ़ना शव पर
ऐसी कलियों पर मर मिटना सच कहता हूँ यारो मैं
***
( रचना 24 अगस्त 2014 )
****
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 10:29am

आदरणीय भांई गुमनाम जी गजल की प्रषंसा के लिए हार्दिक आभार 

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2014 at 5:25pm

 बढ़िया ग़ज़ल कही है  बधाइयाँ,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:57am

आ०  महिमा जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:56am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, गजल पर आपकी उपस्थिति से इसका मान बढ़ा है इसके लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:55am

आदरणीय भाई, आषुतोष जी गजल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और स्नहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:55am

आदरणीय भाई गोपाल नाराणन जी , आपने अपनी प्रतिक्रिया से गजल की प्रशंसा करते हुए मुझे जो असीमित मान दिया है उसके लिए हार्दिक धन्यवाद । अभी मेरी लेखनी इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि आप जैसे विद्वजन मेरी ओर फरियादियों की तरह देखो । मुझ जैसे लेखकों को तो आप जैसे प्रबुद्धजनों का स्नेहभरा मार्गदर्शन चाहिए । जिससे बेहतर से बेहतर लिखकर साहित्यसेवा कर सकूं । स्नेह बनाए रखें यही कामना है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:55am


आदरणीय भाई विजय शंकर जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 6, 2014 at 10:54am

आदरणीय भाई नरेंद्रसिह जी, गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 5:11pm

रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों  को  मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं.... शानदार...हर अशआर उम्दा है .. हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2014 at 5:26pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बढ़िया ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service