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सिंधु मथते कर पड़ा छाला हमारे
हाथ आया विष भरा प्याला हमारे
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धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों
देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे
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भाग्य सुख को ले चला जाने कहाँ फिर
डाल कर यूँ द्वार पर ताला हमारे
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हर तरफ फैले हुए हैं दुख के बंजर
खेत सुख के पड़ गया पाला हमारे
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राह देखी सूर्य की भर रात हमने
इसलिए तन पर लगा काला हमारे
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इक नदी को, की बहुत कोशिश यहाँ पर
भाग्य से ही आ बसा नाला हमारे
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ले रहे संन्यास ऐसा मत समझना
जोगियों सी कंठ जो माला हमारे
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धड़कनें हर हाल कह देंगी ‘मुसाफिर’
रख के देखो प्यार का आला हमारे
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( रचना - 15 अगस्त 2012 )
मौलिक और अप्रकाशित
किंतु संशोधित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भाई, सन्तलाल जी, गजल की प्रशंसा और स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई गिरिराज जी सर्वप्रथम गजल पर अपनी प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु धन्यवाद स्वीकारें । आपने अपनी टिप्पणी में जिस बात का स्पष्टीकरण चाहा है वह यही है कि दोष देवताओं ने मढ़ा उन लोगों पर जिनके हाथों में सिंधु मथते हुए छाला पड़ गया । शायद मेरे सम्प्रेषण में कोई कमी रह गयी है उससे आपको दुविधा हो गयी ।
क्या यहां पर इसे इस प्रकार करने से भाव स्पष्ट हो रहा है या नहीं मार्गदर्शन करें ।
देवताओं ! दोष मढ़ डाला हमारे // देवता ने दोष मढ़ डाला हमारे
आदरणीय भाई जितंेद्र जी , गजल पर आपकी उपस्थिति से जो उत्साहवर्धन हुआ उसके हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई गोपाल नारणन जी निरंतर उत्साह वर्धन और स्नेहाशीष के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई श्याम नारायन जी गजल का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय लक्षमण धामी जी,
इस सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय लक्ष्मण भाई , एक और बढ़िया ग़ज़ल की रचना के लिए बधाइयाँ |
आदरणीय - देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे , इस मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं , समझ नहीं पाया --
१-- हमारे देवताओं पर दोष मढे गए , २ - देवताओं ने हम पर दोष मढ़ दिए , ३ , हमारे शब्द किस के लिए उपयोग हुआ है , जिसके हाथ में छाला पडा
इन तीनो बातों का केवल अंदाजा कगाना पड़ रहा है | हो सकता है मेरी समझ में नहीं आ रही हो , पर औरों को आ रही हो | अगर ऐसा है तो क्षमा करेंगे |
वाह! क्या खूब गजल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी. हर एक शेर तारीफ़ के काबिल हुआ है. तहे दिल से बधाई आपको
धामी जी
अच्छी गजल कही आपने i
धूर्तता अपनी छिपाने के लिए क्यों
देवताओं दोष मढ़ डाला हमारे
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई..... |
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