कल कल कल कल नदियाँ बहती, झरने गीत सुनाते हैं,
तरु शाखाओं पर छिपकर खग, पंचम सुर में गाते हैं.
गिरि, नद, जंगल, अवनि, पशु सब, सृष्टि के अनमोल रतन,
मानव सबसे बुद्धि शील बन, अपनी राह बनाते हैं.
नदियों की धारा को रोकी, शिखरों को भी ध्वस्त किया,
काटके जंगल, भवन बनाते, अब क्यों वे पछताते हैं.
सीख नहीं कुछ लेते मानव, प्रकृति सब कुछ देख रही,
कभी केदार, कभी कश्मीर में, मानव ही दुःख पाते हैं.
सेना सीमा की रक्षक है, आपद में करती सेवा,
सरकारें लाचार हुई जब, सेना के गुण गाते हैं.
अब भी चेतो मानव मन तू, सृष्टि का सम्मान करो,
साथ रहो सब हिलमिलकर ही, दुनियां नयी बसाते हैं.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
Comment
आदरणीय श्री संतलाल करुण जी, सादर अभिवादन!
उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री पवन कुमार जी, सादर अभिवादन!
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी, सादर अभिवादन!
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, सादर अभिवादन!
उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री विजय शंकर जी, सादर अभिवादन!
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय जवाहर जी ,
सामयिक और ज्वलंत विषय पर आप ने तात्कालिक विचार प्रधान रचना दी है --
"ना सीमा की रक्षक है, आपद में करती सेवा,
सरकारें लाचार हुई जब, सेना के गुण गाते हैं.
अब भी चेतो मानव मन तू, सृष्टि का सम्मान करो,
साथ रहो सब हिलमिलकर ही, दुनियां नयी बसाते हैं."
...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई !
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
जवाहर जी
आपकी कविता प्रासंगिक है i
सीख नहीं कुछ लेते मानव, प्रकृति सब कुछ देख रही,
कभी केदार, कभी कश्मीर में, मानव ही दुःख पाते हैं.
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