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पछतावा (लघुकथा)

"भईया,  तुम ऐसा क्यों करते हो, अब तो मेरी सहेलियाँ भी कहती हैं कि तेरा भाई और उसके दोस्त बड़े गन्दे हैं, रास्ते में भद्दे-भद्दे कमेन्ट्स करते हैं"

सन्ध्या अपने भाई से नाराज होते हुए बोली! रोहन उसकी बात को अनसुना करके चला गया। शाम होते ही फिर वह और उसके दोस्त बस स्टाफ की तरफ निकलें, वहां  एक लड़की बस का इन्तजार कर रही थी, चेहरा दुपट्टे से ढका था, उसे देखते ही रोहन कमेन्ट्स करते हुए उसका दुपट्टा खींच लिया, देखा तो अवाक रह गया, जैसे पैरो तले से जमीन ही खिसक गई हो, सामने खड़ी सन्ध्या रो रही थी।

"मौलिक/अप्रकाशित" 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 25, 2014 at 11:11pm

अच्छी लघुकथा.badhai  आदरणीय पवन भाई. पछतावा होना भी , बिलकुल  सही समय का इंतज़ार करता है 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2014 at 9:43pm

वाह पवन जी
आपका प्रयास बहुत अच्छ रहा i सुन्दर i

Comment by Pawan Kumar on September 25, 2014 at 5:06pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन, लघु कथा अच्छी  और शिक्षाप्रद लगी, एक और प्रयास सफल हुआ  इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 4:54pm

वाह शानदार पंच अंत में ----जब अपने पे आई तो जमीन खिसक गई होगी !! एक बहुत ही खूबसूरत सन्देश छुपा है इस कहानी में --यदि हम माँ ,बहन ,बेटी,दोस्त  घर से ही पुरुष की गन्दी संगति उसके ग़लत चाल चलन में सुधार लायेंगे तो बदलाव जरूर आएगा.बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर/शिक्षाप्रद  लघु कथा के लिए|  

Comment by Pawan Kumar on September 25, 2014 at 4:54pm

"आदरणीया सविता मिश्रा जी  सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! 

Comment by savitamishra on September 25, 2014 at 4:48pm

बहुत सुंदर.....

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