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वतन की जान है हिंदी
उपार्जित मान है हिंदी
धरा जो गुनगुनाती है
मुक़द्दस गान है हिंदी
हिमालय फ़क्र करता है
अजल से शान है हिंदी
तेरे वर्के तगाफ़ुल पे
नया फ़रमान है हिंदी
इबादत पे सदाक़त पे
सदा कुर्बान है हिंदी
मेरा मजहब मेरी दौलत
मेरा ईमान है हिंदी
हमारी पाक़ संस्कृति में
बसा सम्मान है हिंदी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
अति सुन्दर। हिन्दी को अच्छा मान दिया है। बधाई।
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है सादर अभिनन्दन
आ० कल्पना रामानी दी,रचना को आपका आशीष मिला लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका.सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल, हार्दिक बधाई आपको प्रिय राजेश जी
आ० डॉ.गोपाल नारायण जी,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ मेरा लिखना सफल हुआ ,तहे दिल से आभार आपका सादर.
vaah---------
महनीया
गजल की रवानी पढ़ते ही बनती है i सभी शब्द चुस्त चुने हुए i आपको बहुत-बहुत बधाई i
आ० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ जो शेर आपने कोट किया उसे देख कर अभी ध्यान गया फ़ख्र है फक्र नहीं इसे एडमिन जी से एडिट करवाउँगी.
हिमालय फ़क्र करता है
अजल से शान है हिंदी ------------------------ बहुत बढ़िया बात कही आदरणीया राजेश जी , हिन्दी की शान में कही ग़ज़ल के लिए दिली बधाइयाँ |
आ० श्याम नारायण वर्मा जी,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया.
प्रिय शिज्जू भैय्या,इस उत्साह वर्धन हेतु तहे दिल से शुक्रिया.
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