आल्हा छंद
बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।
और उसे हम बड़े प्यार से, भैया कहकर गले लगाय।।
हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।
दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।
एक ओर है पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।
*राम - राम कहता अमरीका, छुरी बगल में लिया दबाय॥
इन तीनों का नहीं भरोसा, कब गिरगिट सा रंग दिखाय ।
किस- किस का हम रोना रोयें, जो चाहे हम को चमकाय।।
अमरीका अब बेनकाब है, फिर भी अपनी अकड़ दिखाय।
हम से अपना मतलब साधे, और हमें ठेंगा दिखलाय।।
एक भाग कश्मीर हड़पकर, पाक भेड़िया फिर गुर्राय ।
चीन ले लिया मानसरोवर, अब तक जिसे छुड़ा ना पाय।।
एक हो गये सभी लुटेरे, राहु – केतु बन हमें सताय ।
हम कमजोर हैं जान गया है, ड्रेगन फिर से आँख दिखाय।।
सांप समझ बैठे ड्रेगन को, सरहद पर हम बीन बजाय ।
काबू में जब कर न सके, सिर, दर्द हमारा बढ़ता जाय ।।
अरबों नकली नोट छापकर , पाक उसे भारत भिजवाय ।
*कोई बस ना चले हमारा , खिसियाकर बस हम रह जांय।।
देता पाकिस्तान प्रशिक्षण, आतंकी भारत आ जाय ।
बमबारी, गोलीबारी कर, खूब तबाही दिया मचाय ।।
आएगा न कोई बचाने , करना होगा हमें उपाय ।
ठोस नीति से काम बनेगा, ढुल- मुल नीति काम ना आय।।
चीन किसी की बात न माने, कौन उसे कब तक समझाय ।
मिली भगत है पाक देश से, बातों से हमको बहलाय।।
अमरीका का नहीं भरोसा, यहाँ कहे कुछ वहाँ बताय ।
दुश्मन को पहचान गए हम, चाहे भेष बदलकर आय।।
मन काला है, नीयत खोटी, दोस्त नहीं दुश्मन कहलाय ।
खेल, कला या किसी बहाने, दुश्मन देश में घुस न पाय ।।
आजादी से बाद आज तक, हम धोखे पर धोखा खाय।
अब भी अगर सम्भल न पाए, फिर तो बस भगवान बचाय।।
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मौलिक व अप्रकाशित
*संशोधित
Comment
आदरणीय विजय शंकर भाई,
आप ठीक कहते हैं , कई सौ बरस की गुलामी के बाद भी हमें अच्छे बुरे की पहचान न हो पाई इसका एक प्रमुख कारण यही है कि हम अपने अतीत से कुछ सीखना ही नहीं चाहते। बार- बार जलील होकर भी हम उन्हीं देशों का दामन थामने मज़बूर क्यों हो जाते हैं ? काश हम अपने साथ ही आज़ाद हुए कुछ छोटे देशों से ही कुछ सीखते कि सम्मान और गैरत क्या चीज है, किसे कहते हैं।
मैने अपनी बात छंद में रखने का प्रयास किया है , रचना आपको पसंद आई , हृदय से धन्यवाद आभार
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