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सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया
हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया (दाम=जाल)
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया
ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू
ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया
बहुत हुये गमे दौराँ की नज्मे ये शिकवे
चलो कहें कि मसर्रत का इक कलाम नया
ग़ुज़रते वक्त से चुनकर कोई पल ऐ हमराह
चलो कि ज़िन्दगी को दें हम एक नाम नया
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय खुर्शीद जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय राम शिरोमणी जी आपको देख कर बहुत अच्छा लग रहा है बहुत बहुत शुक्रिया रचना की सराहना के लिये
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार रचना पर आपकी उपस्थिति हमेशा हौसला बढ़ाती है स्नेह यूँ ही बनाये रखें
आदरणीय सोमेश जी रचना को समय देने के लिये आपका हार्दिक आभार
आदरणीय केवल प्रसाद सर आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय सुशील सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है
यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया
आदरणीय शकूर साहब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,दिली दाद कबूल फरमाएं
न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं
करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया........वाह! बहुत खूब. विशेष रूप से बधाई आदरणीय शिज्जू जी
अच्छी गज़ल के लिए बधाई |
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