"बाबू जी, दीये ले लो, बहुत सस्ते हैं, इतना बड़ा त्यौहार है ! "
आठ साल की फटी हुई फ्रॉक ने एक रेशम के कुर्ते को पीछे से खींचते हुए पूछा !
"अच्छा, बड़ा त्यौहार है ! पता भी है क्यों मनाते हैं बड़ा त्यौहार ?"
" हाँ, भगवान रामचन्दर ने बहुत सारे दीये ख़रीदे थे !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
बहुत मार्मिक कथा.
सादर.
खुर्शीद जी ,बहुत बहुत शुक्रिया आपके प्रोत्साहन के लिए ,आभारी हूँ !
आदरणीय नीलेश जी बहुत मार्मिक ,सुन्दर रचना है |बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसमें एक कुल्फ़ी वाला भरी दोपहर में निकल रही एक शवयात्रा के राम नाम सत्य है के साथ 'ठंडी मीठी कुल्फ़ी 'की टेर लगा बैठता है |आपकी रचना वैसी ही सार्थक है |हार्दिक अभिनन्दन
बहुत बहुत धन्यवाद स्वर्ण नायक जी
आपका प्रोत्साहन अच्छा लिखने को प्रेरित करेगा जितेंदर जी
तहेदिल से शुक्रिया आपका mam rajesh kumari ji
बहुत बहुत शुक्रिया भाई somesh kumar जी
बंधु निलेस जी, इस भावात्मक एवं गागर में सागर सहेज लेने वाली लघु कथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ।
बहुत ही सुंदर लघुकथा. दिल को छू गई उतनी ही मासूमियत से, बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय नीलेश जी
वाह्ह्ह्ह बच्चे की मासूमियत बहुत बड़ी बात कह गई ...गरीब के घर में तभी तो दिवाली आएगी जब उनके दीये बिकेंगे .बहुत सुन्दर कहानी लिखी है .हार्दिक बधाई आपको निलेश शर्मा जी |
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