पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।
फुनगियों पर अँधेरा है
आसमान में पहरा है।
जवाब है जिसको देना
वो हाकिम ही बहरा है।
तमस मिटे नव विहान चाहता हूँ।
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।
अंबर कितना पंकील है,
धरा पर लेकिन सूखा है।
दल्लों के घर दूध मलाई,
मेहनत कश पर भूखा है।
पेट भरे ससम्मान चाहता हूँ।
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।
शिक्षा और रोटी के बदले,
धर्म ही लेकिन लेते छीन .
स्वयं ही को श्रेष्ठ बताते
बाकी सबको कहते हीन।
धर्म का ध्येय निर्वाण चाहता हूँ।
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।
घूमते धर्म की पट्टी बांध
संवेदना से कितने दूर
बात अमन की करते लेकिन
कृत्य करते वीभत्स क्रूर
सबको समझे इंसान चाहता हूँ।
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।
….
नीरज नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ...बहुत सुंदर लिखा आपने आदरणीय नीरज जी, हार्दिक बधाई
पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।
बहुत अच्छा है, आदरणीय नीरज कुमार नीर जी , बधाई।
bahut sundar ...bhaiya ...
pankh nahii hai udaan chahta huu...................
आपकी अभिलाषा पूर्ण हो i
सस्नेह i
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