कुत्तों की भोऊ-भोऊ,कोऊ-कोऊ, केए–केए से आवेशित हो कर अनुज बाहर आता है | पीछे छुपाए हुए डंडे को लेकर आगे बढ़ता है बाकी कुत्ते भाग खड़े होते हैं, पर आलिंगनबद्ध जोड़े के ऊपर तीन-चार डंडे भाज देता है | कराहता-चीखता-प्रतिरोध करता युग्ल कुछ दूर चला जाता है | खीझा हुआ अनुज अपनी पत्नी कि कोमल पुकार पर घर के भीतर हो लेता है | मोहल्ले के अन्य शर्मसार लोग भी अपने घरों के दरवाजें, खिड़कियाँ, बतियाँ बंद करने लगते हैं | बाहर स्ट्रीट-लाइट में युग्ल प्रतिद्वन्दियों के बीच, बेझिझक अपने प्रेम-अनुमोदन और सृजनीकरण में संतोष पाता है | पर अंधरे कमरों के स्याह शीशों और छतों के झरोखों से कुछ शर्मसार आँखे, छुप-छुप के शर्मवश, इस बेशर्मी को ताड़ रही होती हैं |
C-@-सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
बहुत खूब , बढ़िया लघुकथा..
शर्म और ओछी मानसिकता के बीच के विभेद को स्वीकारने और सम्मान देने के लिए सभी मनीषियों का प्रणाम |
sundar rachana hardik badhai
लाजवाब , निशब्द
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