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बहुत खूब ! आदरणीय रवि भाई , बधाइयाँ ।
क्या अब भी पुलिनों तक आते हैं सब धारे,-------यहाँ धारे की जगह आती है हर धारा या आती हैं सब लहरें करें तो ज्यादा बेहतर होगा
क्या सूखी सिकता में मोती मिलते होंगे?
अँधियारी रातों में गाते हैं सब तारे,
क्या उथली नींदों में सपने खिलते होंगे?-----कमाल का बंद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई आपको
waaaaaaaaah waaaaaaaaaaaah achchhi rachna sahib
sateek ....prashn se bharpur ....bebaak samvednayo se bhare ...kalkal bahta hue geet ko meri shubkamnaye .......bahut khoob ....
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