सोनू जब सुबह सो के उठा तो माँ को घर में देखे के बोला - "अरे माँ आज ऑफिस नहीं गये आप ??"
माँ ने मुस्करा के "नहीं बेटा आज ऑफिस की सरकारी छुट्टी है .."
"छुट्टी कैसी माँ ?? कल ही तो आप सांता बाई को काम पर न आने के लिए डांट रही थी कि रोज रोज छुट्टी नहीं मिलती है ...
आपको छुट्टी मिल सकती है तो सांता बाई को क्यों नहीं माँ ?"
"फिर सरकार कितनी छुट्टी करती है माँ. "
जवाब तो माँ के पास था नहीं , बस डांट थी सोनू के लिए ....
(मौलिक व अप्रकाशित )
आलोक
मथुरा
Comment
आद. Shubhranshu Pandey जी.....शुक्रिया आपका .....जरूर ध्यान दूंगा
आद. Er. Ganesh Jee "Bagi" जी .....जी जरूर कोशिश करूंगा ...सादर आभार आपका
आद.लक्ष्मण रामानुज लडीवालाजी....आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मेरी रचना का पढ़ कर मेरा हौसला बढ़ाया.
आदरणीय मित्तल साहब, ऊपर की तीन पक्तियां अपनी बात कहने में सक्षम हैं, बाकी तीन पक्तियों की आवश्यकता नहीं लगता, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई।
इस लघु कहानी से मुझे मेरे पोते का ध्यान आया जिसके "क्यों" का जवाब मुझ सहित पुरे परिवार के किसी सदस्य के पास नहीं होता | सुंदर लघु कहानी के लिए बधाई श्री अलोक मित्तल जी
आ. Dr. Vijai Shanker जी.....आपका बहुत बहुत शुक्रिया ....
आदरणीय somesh kumar जी.....आपका दिल से आभार
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी.....शुक्रिया आपका ...कोशिश करेंगे की कम शब्दों में अपनी बात कही जा सके ...आपका आभार
बढ़िया लघुकथा , आदरणीय आलोक जी. कभी-कभी बच्चों के प्रशन भी उत्तर लायक नही रह पाते
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