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बराबरी (लघुकथा)

"दो लड़कियाँ तो पहले ही थी, अब ये एक और हो गई।" उसने बड़ी मायूसी से कहा।
"तू चिन्ता मत कर कमला। आजकल की लड़कियाँ किसी भी चीज़ मेँ पीछे नही हैँ।, हर काम बराबर से करती हैँ, बल्कि माँ बाप के लिए जितना लड़कियाँ करती हैँ उतना तो आजकल लड़के भी नही करते।" सरोज ने अपनी पड़ोसन को समझाते हुए कहा।
"तू ठीक ही कहती है सरोज।  अरे हाँ याद आया,  तेरी बहू भी तो पेट से है न? कौन सा महीना है?"
"पाँचवा महीना है। अगर ठाकुर जी की कृपा रही तो पोता ही होगा।"

"पूजा"
अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by pooja yadav on November 11, 2014 at 1:36pm
सराहना के लिए आप सभी आदरणीय सदस्यगणोँ का सादर आभार।
Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 4:54pm

भावपूर्ण लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीया पूजा जी।

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:01pm

पूजा जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा //हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2014 at 6:04pm

बेटा बेटी के फ़र्क की ये खाई इतनी गहरी है जिसे पाटना बहुत मुश्किल है कथनी और करनी में बहुत फ़र्क है बेहतरीन मिसाल देती हुई आपकी ये लघु कथा बहुत बढ़िया ,हार्दिक बधाई पूजा जी| 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 7, 2014 at 12:55pm
कथनी और करनी में भेद में जो स्वार्थ की बू आती है या फिर कहे पर उपदेश कुशल बहतेरे |इसको कुशलता से समझा दिया है | बहुत सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आद पूजा यादव जी
Comment by Shyam Narain Verma on November 6, 2014 at 11:34am

अच्छी कहानी के लिए हार्दिक बधाई |

Comment by pooja yadav on November 5, 2014 at 8:40pm
आप सभी आदरणीय लेखकगणोँ एवं सदस्यगणोँ का हृदय से आभार।
मैँने गत बीस दिनोँ से ही लिखना शुरू किया है। ऐसे मेँ आप सभी की ऐसी टिप्पणियोँ से हृदय द्रवित हो गया।
आप सभी का धन्यवाद।
Comment by pooja yadav on November 5, 2014 at 8:39pm
आप सभी आदरणीय लेखकगणोँ एवं सदस्यगणोँ का हृदय से आभार।
मैँने गत बीस दिनोँ से ही लिखना शुरू किया है। ऐसे मेँ आप सभी की ऐसी टिप्पणियोँ से हृदय द्रवित हो गया।
आप सभी का धन्यवाद।
Comment by Sushil Sarna on November 5, 2014 at 6:18pm

वाह चुभती हुई अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति   .... सामाजिक व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य  … हार्दिक बधाई आदरणीया पूजा जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 5:03pm

बहुत मार्मिक और जीवंत कथा i चुभता हुआ व्यंग्य i सामाजिक विद्रूप का नायब नमूना i  ऐसी रचना के लिया बधाई i

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