"दो लड़कियाँ तो पहले ही थी, अब ये एक और हो गई।" उसने बड़ी मायूसी से कहा।
"तू चिन्ता मत कर कमला। आजकल की लड़कियाँ किसी भी चीज़ मेँ पीछे नही हैँ।, हर काम बराबर से करती हैँ, बल्कि माँ बाप के लिए जितना लड़कियाँ करती हैँ उतना तो आजकल लड़के भी नही करते।" सरोज ने अपनी पड़ोसन को समझाते हुए कहा।
"तू ठीक ही कहती है सरोज। अरे हाँ याद आया, तेरी बहू भी तो पेट से है न? कौन सा महीना है?"
"पाँचवा महीना है। अगर ठाकुर जी की कृपा रही तो पोता ही होगा।"
"पूजा"
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
भावपूर्ण लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीया पूजा जी।
पूजा जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा //हार्दिक बधाई आपको
बेटा बेटी के फ़र्क की ये खाई इतनी गहरी है जिसे पाटना बहुत मुश्किल है कथनी और करनी में बहुत फ़र्क है बेहतरीन मिसाल देती हुई आपकी ये लघु कथा बहुत बढ़िया ,हार्दिक बधाई पूजा जी|
अच्छी कहानी के लिए हार्दिक बधाई | |
वाह चुभती हुई अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति .... सामाजिक व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य … हार्दिक बधाई आदरणीया पूजा जी
बहुत मार्मिक और जीवंत कथा i चुभता हुआ व्यंग्य i सामाजिक विद्रूप का नायब नमूना i ऐसी रचना के लिया बधाई i
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