जानकीप्रसाद जी सेवानिवृत्ति के पश्चात कई वर्षों से अपनी पत्नि के साथ, बड़े प्यार से अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे है. दीपावली के आते ही घर में रंगरोगन का काम शुरू होने वाला है. जानकीप्रसाद जी ने अपने पडौसी से कहकर, दीवारों पर रंग करने के लिए एक पुताई वाले को बुलवाया है. उस पुताई वाले नौजवान को देख अकेले रह रहे बुजुर्ग दंपति बहुत खुश है. क्युकी दो-तीन दिनों के लिए एक मेहमान आया है
“बेटा! तुम्हारा क्या नाम है..? “ जानकीप्रसाद जी ने बड़े ही स्नेह से पूछा
प्रश्न के सुनते ही नौजवान के चेहरे पर संकोच की कई लकीरें थी, जो जानकीप्रसाद को अपनी उम्र के अनुभव व् बुजुर्ग कमजोर आँखों से भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. फिर भी धीमें स्वर में नौजवान ने कहा..
“ जी, मोहम्मद अयाज “
“ अरे..बेटा! बड़ा प्यारा नाम है तुम्हारा, इतना संकोच क्यों कर रहे थे अपना नाम बताने में. अगर तुम अपने नाम से धर्म की स्पष्टता से डर रहे थे तो बेटा सुनो..तुम्हारी उम्र का मेरा भी बेटा है जिसका नाम श्रवण है, यहीं इसी शहर में हमसे अलग रहता है अपनी पत्नी के साथ “ जानकीप्रसाद जी की आवाज में एक पिता का आत्मबल व् एक बरगद के पेड़ की घनी गहरी छाँव भी थी
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
पुत्र के बिछोह में एक पिता का दर्द उभर कर आया है ,बढ़िया लघु कथा जितेन्द्र भैया |
अकेला पन बहुत काटता है सबको वो भी तब जब उम्र का ये पढ़ाव आ जाये और बेटा जो साथ न हो ....बहुत ख़ूबसूरती से आपने दर्द बयां कर दिया ....बहुत बधाई आपको
आदरणीय जितेन्द्र जी 'धर्म' लघु कथा अपने में एक अर्थ छुपाये हुए है। अंतिम पंक्ति से पूर्व तक वो अपने गंतव्य तक जाती प्रतीत होती है लेकिन अंतिम पंक्ति ''जानकीप्रसाद जी की आवाज में एक पिता का आत्मबल व् एक बरगद के पेड़ की घनी गहरी छाँव भी थी'' धर्म के उद्देश्य से भटकती प्रतीत होती है। यहां पर अगर नाम श्रवण के साथ अलगाव का दर्द पैदा किया जाता तो धर्म और नाम की महता को बल मिलता। फिर भी इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। आदरणीय क्षमा सहित ये मेरे निजी विचार हैं कृपया इसे अन्यथा न लेवें।
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