हथेली
अभी –अभी बुद्धिजीवियों की नगरी में सत्ता का चुनाव हुआ । किसी दल को जरूरी बहुमत नहीं हासिल हुआ । सत्ता –दल धूल फाँकता नजर आया ।वह चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या के आधार पर तीसरे स्थान पर रहा । पहले सबसे बड़े दल की उम्मीदों पर झाडू फिर गया, हसरतों का फूल मुरझाते –मुरझाते बचा । । एक नवोदित दल को सदन में संख्या के अनुसार दूसरा दर्जा प्राप्त हुआ । अब सरकार बने तो कैसे ? शासन –कार्य कौन देखेगा ?सत्ता –च्युत दल ने विपक्ष में बैठने की अपनी बात कही । दूसरे दर्जे वाले दल ने समर्थन लेने –देने से इंकार कर दिया । प्रथम दल भी सरकार बनाने से ही मुकर गया । उसके पास पूर्ण बहुमत जो नहीं था । कुछ दिन उहापोह की स्थिति रही । सब सोचते फिर चुनाव होंगे क्या ?अभी –अभी तो हमने अपना मतदान किया था । फिर नयी सरकार के गठन की अंतिम तिथि नजदीक आने लगी । सत्ता –च्युत दल ने नवोदित दल को बिना शर्त समर्थन की बात उछाल दी । नवोदित दल के नेता दुबिधाग्रस्त हो गये । जिसके विरोध में चुनाव लड़ के आये, उससे भला समर्थन कैसे लें ?वे फिर से जनता की तरफ मुखातिब हुए , कुछ जन सभाएं हुईं , कुछ लोगों के विचार जाने गये , फिर बिना शर्त वाले समर्थन से सरकार बनाने की घोषणा हो गयी ।
सदन में विश्वास –मत –परीक्षण के दौरान सबसे बड़े दल के नेता ने नैतिकता का सवाल उठाया कि जिसके विरोध से यह दल अस्तित्व में आया है , उससे भला समर्थन लेकर सरकार क्यों बनायेगा? पर्दे के पीछे की कथा सदन में उजागर हो । पर समय का तकाजा रहा कि बिना समय गँवाये , बिन बहस मतदान हुआ । सत्ता –च्युत दल ने सरकार का साथ दिया। छोटे दल भी साथ रहे । भला अकेले कौन तीर मार लेते वे ? सरकार की जयकार हुई । सत्ता –च्युत दल उद्घोषित कर रहा था कि हमारी तो सदा लोक –सेवा की परंपरा रही है । हम जब सरकार में थे , तो जनता हमारी हथेली पर थी और जब सरकार से बाहर हैं, तो सरकार हमारी हथेली पर है । हमारा दायित्व तो पूरा हो गया, भई । पहला सबसे बड़ा दल हिकारतभरी नजरों से सत्ता –च्युत दल को देख रहा था ।
*** (जनवरी 2014 में लिखित)
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
दिल्ली की राजनीति को निशाने पे लिखी आप की लघुकथा तब भी सार्थक थी और शायद महाराष्ट्र के लिए भी कुछ हद तक सही बैठती है और कौन जाने दिल्ली के अगले परिणाम आने पे फिर से अर्थपूर्ण हो जाए ये रचना |सार्थक लेखन प्रयास के लिए शुभकामनाएं
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