नाटिका
ग्राम –महोत्सव गरिमा बिखेर रहा था । लक –दक सजावट, बार –बालाओं की अठखेलियाँ, हास्य कलाकारों के करतब गज़ब ढाये हुए थे । सोम –रस की सरिता जन से लेकर प्रतिनिधि तक को सराबोर किये थी । शीत ऋतु में उष्णता का अहसास ऐसा ही होता है। तन आधे –अधूरे ढँके होने से क्या? मन की उमंगों पर कोई लगाम न होनी चाहिए । हर तरफ मादकता छितरायी –सी जाती है, जो जितना लपक -झटक ले। एक पत्रकार ने नेताजी से मुखातिब हो सलाम ठोंका । नेताजी मुँह बिचकाते –बिचकाते रह गये ।कैमरे की निगाह में थे न । ‘सवालों का गोला लिए आया होगा, समय का ध्यान ही नहीं रहता इन लोगों को’, फुसफुसाये फिर बोले,
‘हाँ, बोलो भाई। कुछ खाया?’
‘जी नहीं । आज मैं हाल के दंगे के विरोध में उपवास पर हूँ’।
‘भली बात । चाहता मैं भी नहीं था, पर यह हर साल का रिवाज है, सो आयोजन करना पड़ा।’
‘राहत –शिविर में कोई सामाग्री नहीं है, सर । पीड़ित परेशान है’।
‘यही तो मैं ऐलान कर रहा था कि विपक्षवाले हमें बदनाम कर रहे हैं । देखो, यहाँ एक नाटिका का आयोजन हुआ है जिसमें बताया गया है कि हमारी सरकार पीड़ितों के लिए कितना कुछ कर रही है’।
‘जी’।
सब लोग नाटिका देखने लगे । उत्तरार्द्ध में एक वृद्धा हाथों में एक नवजात शिशु लिए बिलखती कह रही थी कि इसके माँ –बाप दंगे की भेंट हो चुके हैं, मदद कीजिये । सिने तरीका उसे ढाढ़स बंधा रही थी, नेताजी ताली बजा रहे थे, ‘वाह, क्या सटीक चित्रण है दंगे के बाद की दशा का !’
‘हुजूर ! यह नाटिकावाली बुढ़िया नहीं है । यह तो शिविर से सीधे आयी एक पीड़िता है, सैकड़ों –हजारों तो बाहर खड़े हैं । हमारे सिपाही उन्हें रोके हुए हैं’, नेताजी के शोहदों ने उन्हे समझाया ।
नेताजी माथा पीटने लगे । फॉटोग्राफर महोत्सव में हो रही नाटिका की भीतर –बाहर की फिल्में निकालकर जा चुका था ।
***"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आभार,किशनजी।
वाह,ऐसा लगता है यूपी/छतीसगढ़ के चित्र पुनः प्रस्तुत किए गए हैं |सुंदर चित्रण के लिए बधाई
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