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नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक
वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका था जो तुमने
तुम्हारा आईना दिल का अगर टूटा तो क्या होगा
बरी हो तुम भले ही आज अपने इन गुनाहों से
अदालत से ख़ुदा की फेंसला आया तो क्या होगा
बहुत बर्दाश्त करता है न कहता कुछ जुबाँ से वो
शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० श्याम नारायण वर्मा जी,आपका तहे दिल से आभार |
आ० डॉ० गोपाल नारायण जी,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से नत हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सादर
आ० डॉ० गोपाल नारायण जी,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से नत हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सादर
आ० योगराज जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना से बहुत मुग्ध हूँ आपकी प्रतिक्रिया किसी पुरस्कार से कम नहीं तहे दिल से आभारी हूँ सादर |
आ० गिरिराज भंडारी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उत्साहित हूँ ,तहे दिल से आभार आपका |
हार्दिक शुक्रिया सोमेश भैया .
हार्दिक शुक्रिया प्रिय पूजा यादव जी
शिज्जू भैय्या ,ग़ज़ल पर होंस्लाफ्जाई करती हुई आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया सके लिए दिल से आभारी हूँ बहुत- बहुत शुक्रिया.
".वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,खूबसूरत गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई, सादर " |
महनीया
कुछ भी कहना मुनासिब नहीं i पूरी गजल शब्दातीत है i कलम की आग है यह i सादर i
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