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"सर, एक काॅलेज की लड़की से बलात्कार हुआ है उसे हॉस्पिटल में लाया गया है।"-फोन पर किसी ने पत्रकार को सूचना दी।
"चलो यार, एक लड़की से बलात्कार करना है........"
"किसी टाइम तो अपनी जुबान को लगाम लगा लिया करो।"
"हाहाहाहाहा............"- ठहाकों से प्रेस रूम गूंज उठा और सभी पत्रकार उठकर हस्पताल की तरफ चल दिए।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 2:40pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी धन्यवाद आपका।
Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 2:36pm
आदरणीय गणेश जी धन्यवाद सर जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:45pm

सच्चाई तो यह है कि पुलिस, डाक्टर और पत्रकार उनके लिए तो यह एक रोजमर्रा की घटना है i फिर भी समाज ऐसे  क्रूर मजाक की अनुमति नहीं देता i यह निर्लज्ज हृदय हीनता तब समझ में आती है जब कोई दुर्घटना अपनो के साथ होती  है i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 4:50pm

पत्रकारों के लिए तो वो महज़ एक केस है, व्यावसायिकता के इस दौर में मानवता नाम की चीज दम तोड़ती नज़र आती है, इस लघुकथा पर आपको हृदय से बधाई आदरणीय विनोद जी।

Comment by विनोद खनगवाल on November 23, 2014 at 10:00am

aa. somesh ji apka bahut bahut dhanywad

Comment by somesh kumar on November 22, 2014 at 8:34pm

टी.आर.पी. की हौड में पत्रकारिता एक सेवा नहीं एक व्यवसाय बन गया है ,जहाँ बाल की खाल निकालने की परम्परा हावी होती जा रही है ,पत्रकारिता का मानवीय पक्ष दम तोड़ रह है ,तथा सम्वेदनाएँ अर्थहीन हो रही हैं |सार्थक लघुकथा 

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