जिसने दिया हमें आदर्श शिष्य की पहचान
गुरु को दे अंगूठा जब एकलव्य बने महान
हो लगन कुछ सीखने की इनसे सीखे हम
जग को हिला सकते नहीं किसी से पीछे हम
गुरु-शिष्य की फिर वही परम्परा जगानी है
हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है |
अपने प्राणों की आहुति देकर जो चले गये
इन्कलाब का नारा दे ,गोली खाकर जो चले गये
स्वतंत्रता -गणतन्त्र दिवस पाठशाला तक सिमट गये
जिनके हाथों में बागडोर वो मधुशाला तक सिमट गये
जो भूल गये भारत माँ को ,फिर उनको याद दिलानी है
हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है |
आओ जरा इतिहास को पलटो
हर पापी की साख को पलटो
उदहारण तुम्हे बहुत मिलेंगे
आगे आओ ,साथ बहुत मिलेंगे
हमसब को मिलकर ,भारत की संस्कृति वापिस लानी है
हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है ||
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
आपका आभार ,आ. आसुतोष मिश्रा जी |
आदरनीय त्रिपाठी जी वर्तमान परिदृश्य का चित्रण करती शानदार रचन के लिए तहे दिल बधाई सादर
sundar rachnaa
धन्यवाद आ. मीना जी |
बहुत सुन्दर ...बधाई
कुछ करने की एक पहल |
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