"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |
"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा |
"पर ,यार मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "
सुजीत-"तेरी बहन ,यार "
इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
सुंदर सीख देती लघु कथा हुई है | शब्द "धोका" अखर रहा है | धोखा करले
हार्दिक बधाई महर्षि त्रिपाठी जी,कम शब्दों में अच्छी रचना !
मेरी कोशिश पर आप सभी के आशीर्वाद पर , आभार प्रकट करता हूँ|
आदरणीय प्रभाकर जी ,आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहा तो आगे जरूर अच्छा लिखेंगे |
बढ़िया लघुकथा है भाई महर्षि त्रिपाठी जी, लेकिन थोड़ी कसावट मांग रही है। बहरहाल, इस सद्प्रयास पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
अच्छी सीख मिली जब आसमान सर पे गिरा तो ...बढ़िया लघु कथा ..बहुत बहुत बधाई
सीख देती हुई लघुकथा सही नाम रक्खा आपने!
सम्मान के लिए शुक्रिया ,,,"बागी " जी |
इस प्रयास पर बधाई।
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