For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122

रात की काली सियाही जिंदगी में छा गई तो आप ही बतलाइये हम क्या करेंगे
चार दिन की चांदनी जब आदमी को भा गई तो आप ही समझाइये हम क्या करेंगे

जन्नतों के ख्वाब सारे टूटकर बिखरे हुए है, बस फ़रिश्ते रो रहे इस बेबसी को
दो जहाँ के सब उजालें तीरगी जो खा गई तो आप ही फरमाइये हम क्या करेंगे

वो थमा था, चैन से सोया हुआ था, सब तरह से बात भी वो तो हमारी मानता था  
इक समंदर को नदी की तिश्नगी भरमा गई तो आप ही जतलाइये हम क्या करेंगे

खूब थे उसके उजालें, चाँद-तारों को भी पाले, जगमगाती कायनातों को हँसाती
आसमानों की ग़ज़ल से रौशनी शरमा गई तो आप ही कह जाइये हम क्या करेंगे

आपकी वो हरकतें, तहजीब की हद भूल के बस यों हंसी से डोलना जैसे बला हो 
आपकी इन आदतों से आशिकी बल खा गई तो आप ही शरमाइये हम क्या करेंगे

जिंदगी की गर्द से सपने उठाकर रूह में जब वेदनाएं घुल गई फिर डायरी को,
प्रेम की पीड़ा मिली बस शायरी भी आ गई तो आप ही तर जाइये हम क्या करेंगे


-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
( मौलिक एवं अप्रकाशित )                        मिथिलेश वामनकर, 29 नवम्बर, 2014
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------

बह्र-ए-रमल मुइज़ाफ़ी मुसम्मन सालिम (14-रुक्नी)
( अर्कान- फ़ायलातुन, फ़ायलातुन, फ़ायलातुन, फ़ायलातुन, फ़ायलातुन, फ़ायलातुन, फ़ायलातुन)
( वज़न- 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122, 2122 )

Views: 998

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:21pm

वाह भाई  सुन्दर प्रस्तुति  //बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 1:16pm

आपकी इन आदतों से आशिकी बल खा गई तो आप ही शरमाइये हम क्या करेंगे....सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको मिथिलेश जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 1, 2014 at 10:49pm

सभी आदरणीय गुनीजनों से निवेदन है कि इस ग़ज़ल में और भी ऐब हो तो बताने की कृपा करें ताकि सुधारने के साथ साथ सीख भी सकूं .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 1, 2014 at 8:27pm

आदरणीया राजेश कुमारी महोदया आपने इस ग़ज़ल को पढ़ा और टिप्पणी की आपका बहुत बहुत धन्यवाद .. ऐब दूर करने का प्रयास करता हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 1, 2014 at 8:24pm

आदरणीय श्याम वर्मा जी इस प्रयास को पसंद करने लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ...आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 1, 2014 at 8:23pm

आदरणीय भुवन जी इस प्रयास को पसंद करने लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ...आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 1, 2014 at 6:36pm

एक लम्बी बह्र को अच्छे से निभा गए आप ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई आ० बागी जी की बात काबिले गौर है जो आप ठीक कर ही लेंगे  

बहरहाल बहुत सी बधाईयाँ कबूलें 

Comment by Shyam Narain Verma on December 1, 2014 at 2:34pm

"बहुत खूब ,बहुत सुन्दर गजल"

Comment by भुवन निस्तेज on December 1, 2014 at 8:27am

बधाई हो आदरणीय ! आप्नेबहुत ही खूबसूरती से इस बह्र में अपनी बात कह डाली...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 30, 2014 at 4:02pm
आदरणीय बागी जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद इस नए प्रयास की सराहना के लिए।' बला से' और 'तरह से' ऐब पर ध्यानाकर्षित करने के लिए आभार। तत्काल कुछ नहीं सूझ रहा है। शीघ्र ऐब दूर करने प्रयास करता हूँ। आपका आशीर्वाद और सुझाव निवेदित है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service