For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक़्ते-पैदाइश पे यूं

मेरा कोई मज़हब नहीं था
गर था मैं,

फ़क़त इंसान था, इक रौशनी था

बनाया मैं गया मज़हब का दीवाना
कि ज़ुल्मत से भरा इंसानियत से हो के बेगाना
मुझे फिर फिर जनाया क्यूँ
कि मुझको क्यूँ बनाया यूं

पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख
दिया किरपान बन गया सिक्ख

कि बस ऐसे धरम की खाल को
मज़हब के कच्चे माल को
यूं ठोककर और पीटकर
खूं से सजाने वाला था
फ़ित्ना सिखाने वाला था
इक कारखाना कारगर
यारो कि मेरा अपना घर.…… अपना घर

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
-------------------------------------------------------

Views: 841

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 14, 2016 at 12:54pm

//

वक़्ते-पैदाइश पे यूं

मेरा कोई मज़हब नहीं था 
गर था मैं,

फ़क़त इंसान था, इक रौशनी था//

इस खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय मिथिलेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 6:39pm
आत्मीय अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 18, 2015 at 3:50pm

बस नमन और क्या ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2015 at 6:48pm

आदरणीया  shalini kaushik  जी रचना की सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार 

Comment by shalini kaushik on February 1, 2015 at 10:44pm

पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो 
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों 
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख 
दिया किरपान बन गया सिक्ख

kitna aasan hai dharm parivartan kash itna asan insan banna hota .nice feelings .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 10:07pm

आदरणीय नरेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 10:07pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद .. आपकी हौसलाअफजाई से कुछ और नज्में कह सकूंगा... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2014 at 1:33pm

आ. मिथिलेश भाई , सुरुवाती संस्कार घर मे ही पड़्ते हैं और वही अंततः हमारा व्यवहार तय करता है ! सुन्दर न्ज़्म के लिये बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2014 at 11:28pm

आदरणीय सोमेश जी सही कहा आपने | आपको प्रस्तुति पसंद आई ..आभार धन्यवाद

Comment by somesh kumar on December 4, 2014 at 11:08pm

तालीम घर से होती है फिर चाहे वो मजहब की हो या उसके मूल्यों की ,परिवेश और घर वालों की सोच से हम अपने अंदर धर्म को ढालते है|सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service