जीवन जीने का चाव
जहां उग जाता है
कविता कहने का भाव
वहाँ से आता है
अनुभव के बाजारों से
जो लेकर आता हूँ
उसे ही कविता बना के
जीवन में, मैं गाता हूँ
सुख-दुःख हों जीवन के
चाहे हों उत्थान-पतन
सब कविता की कड़ियों में
छिपा लेता हूँ , करके जतन
जीवन में रहते हैं मेरे नव-रंग
कविता जब तुम होती हो संग-संग !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी !
आदरणीय दुबे जी सुन्दर प्रस्तुति //बधाई आपको
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी !
सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय डॉक्टर साहब ,आपका हार्दिक आभार ,मैं हिंदी भाषा का छात्र तो नहीं रहा ,न ही आप लोगों जैसा लिख पता हूँ ,पर आप जैसे लोगों के स्नेह से अभिभूत हो जाता हूँ ,प्रेरणा देने के लिए आपका हृदय से आभार ,सादर !
जीवन जीने का चाव
जहां उग जाता है
कविता कहने का भाव
वहाँ से आता है--------------- शुभान अल्लाह i
आदरणीय श्री गणेश जी "बागी "सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार, एवं आपके मागदर्शन के लिए भी ! सादर !
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार सोमेश भाई !
सुन्दर भाव, तनिक और मांजने की जरुरत है, बधाई इस प्रयास पर।
शायद एक लेखक का जीवन यही है जोदेखा/पढ़ा /महसूस किया उसे रचना में संजो लिया ,सुंदर प्रयास
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