हम याद तुम्ही को करते थे,
छुप छुप के आहें भरते थे,
मदहोश हुआ जब देख लिया
सपनों में अब तक मरते थे.
रूमानी चेहरा, सुर्ख अधर,
शरमाई आँखे, झुकी नजर,
पल भर में हुए सचेत मगर,
संकोच सदा हम करते थे.
कलियाँ खिलकर अब फूल हुई,
अब कहो कि मुझसे भूल हुई,
कंटिया चुभकर अब शूल हुई,
हम इसी लिए तो डरते थे.
अब होंगे हम ना कभी जुदा,
बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,
हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,
नित आश इसी की करते थे.
(मौलिक व अप्रकाशित )
- जवाहर लाल सिंह
Comment
उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी!
याद को बहुत शिद्दत से उभारा है आ० जवाहरलाल सिंह जी, बधाई स्वीकारें।
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री विजय निकोर साहब!
अति सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई।
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री भंडारी साहब!
बहुत सुन्दर प्रेम गीत की रचना की है आदरणीय जवाहर भाई , हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय श्री नीरज कुमार नीर जी!
हार्दिक आभार आदरणीय श्री राम शिरोमणि पाठक जी!
हार्दिक आभार आदरणीय श्री हरी प्रकाश दुबे जी
सुंदर प्रस्तुति ॥
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