मुट्ठी में कब रेत भी, ठहरी मेरे यार।
चार पलों की जिंदगी, बाकी सब बेकार।।
जीवन की इस भीड़ में, सबके सब अनजान।
सिर्फ फलक ही जानता, तारों की पहचान।।
पाप पुण्य जो भी किया, सब भोगे इहलोक।
जाने कैसा कब कहाँ, होगा वो परलोक।।
आँखों ने जाहिर किया, कुछ ऐसा अफ़सोस।
आँखों पे कल धुंध थी, अब आँखों में ओंस।।
व्यर्थ मशालें ज्ञान की, प्रेम पिघलते दीप।
बिखरी है हर भावना, सिमटा दिल का सीप।।
सागर से मत मांगिए, बूँद बराबर प्यास।
टूट न जाए देखिये, दरिया का विश्वास।।
पलकों का है पालना, नैनो की है डोर।
रिश्तों के सुख दे गए, मुस्कानों के पोर।।
दरवाजे सब बंद है, कैसा यार मकान ।
दिल की खिड़की खोल दे, मन का रोशनदान।।
कोयलिया की कूक से, गुंजित है मधुमास।
तुम बिन अमराई मगर, लगती बहुत उदास।।
-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
-------------------------------------------------------
Comment
परम आदरणीय सौरभ पाण्डेजी, आपको यह प्रयास पसंद आया . आपका आभार, धन्यवाद. त्रुटियों पर आज प्रयास करता हूँ
परम आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आपका इस रचना पर उपस्थित होना ही उत्साह वर्धक है . सभी गुनीजनो के निर्देशानुसार आज दोहे ठीक करने का प्रयास करता हूँ . आपका आभार, धन्यवाद
बेहतर प्रयास हुआ है आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी.
आप इस पटल के भारतीय छन्द विधान समूह के निम्नलिखित लिंक पर दोहा सम्बन्धी पर्याप्त जानकारी ले सकते हैं -
http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
धन्यवाद
सुन्दर और सार्थक दोहे कहे हैं भाई मिथिलेश वामनकर जी, आपकी लेखन प्रतिभा का एक और पहलू सामने आया। हालांकि शिल्प की दृष्टि से काफी जगह सुधार की गुंजायश है, जिसकी तरफ सुधिजन इशारा कर भी चुके हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप उनपर अवश्य गौर करेंगे।
टूटी मशालें ज्ञान की पिघले प्रेम के दीप
भावनाएं बह गई सिमटा दिल का सीप
इस दोहे में सुधार करने पर अर्थ बदल रहा है . त्रुटी दूर नहीं कर पा रहा हूँ
परम आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी रचनाओं पर उपस्थिति मात्र से बहुत उत्साह वर्धन होता है .. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आभार, आपने जिन पंक्तियों को त्रुटिपूर्ण चिन्हित किया है उन्हें यथाशीघ्र सुधार करने का प्रयास करता हूँ ... पुनः तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी..... आपने जिस बारीकी से दोहों पढ़ा और त्रुटियों को चिन्हित करते हुए जो अपने अमूल्य सुझाव दिए उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया ... आभार .. जल्द ही दोहे ठीक करता हूँ ..
आदरणीय मिथिलेश भाई , सुन्दर दोहों के लिये बधाई , निम्न पंक्तियों की मात्रायें फिर से गिन लीजियेगा ।
टूटी मशालें ज्ञान की पिघले प्रेम के दीप
भावनाएं बह गई सिमटा दिल का सीप
सुख के मोती बिखेर दे मुस्कानों के पोर
दरवाजे सब बंद है कैसा तेरा मकान
सुंदर भाव लिए दोहे रचने के लिए बधाई -
मुट्ठी में कब रेत भी, ठहरी मेरे यार,
चार पलों की जिंदगी, बाकी सब बेकार | - सुंदर दोहा
जीवन की इस भीड़ में ,सबके सब अनजान
सिर्फ फलक ही जानता, तारों की पहचान | - बहुत खूब
पाप पुण्य जो भी किया, सब भोगे इहलोक
जाने कैसा कब कहाँ, होगा वो परलोक |
आँखों ने जाहिर किया कुछ ऐसे अफ़सोस - किया" के साथ ऐसे की जगह "ऐसा" आना चाहिए
आँखों पे कल धुंध थी अब आँखों में ओंस
टूटी मशालें ज्ञान की पिघले प्रेम के दीप, - विषम चरण में 14 और सम चरण में १२ मात्राए हो रही है
भावनाएं बह गई सिमटा दिल का सीप - भावनाए बह गई - 11 मात्राए हो रही है - भावनाए बहती गई - कर सकते है
सागर से मत मांगिए बूँद बराबर प्यास
टूट ना जाये देखिये दरिया का विश्वास - वहम 14 मात्राए हो रही है | "टूट न जाए देखिये" कर सकते है |
पलकों का है पालना, नैनो की है डोर
सुख के मोती बिखेर दे मुस्कानों के पोर - विषम चरण में 14 मात्राए हो रही है
दरवाजे सब बंद है कैसा तेरा मकान -- ------- सम चरण में कुछ लय भंग लग रही है मात्राए भी १२ हो रही है
दिल की खिड़की खोल फिर मन का रोशनदान- दिल की खिड़की खोल दे, मन का रोशन दान
कोयलिया की कूक से,गुंजित है मधुमास
तुम बिन अमराई मगर लगती बहोत उदास-- बहोत शब्द गलत है और इससे मात्रा भार बढ़ रहा है | बहुत शब्द करना उचित होगा
सुंदर दोहों में त्रुटियाँ सुधार अपेक्षित | सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online