For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सपना (एक संस्मरण ,एक मनोव्यथा )

आज से 2 साल पहले ज़िन्दगी की सबसे काली रात मेरी प्रतीक्षा कर रही थी |काला नाग अपना फन फैलाए ,घात लगाए बैठा था ,मेरा सब कुछ छीन लेने के लिए |नहीं जानता था की जीवन के सबसे सुंदर सपने का आज अंत हो जाएगा | 12 दिसम्बर 2009 को जब प्रणय-सूत्र में तुमसे बंधा था तो उसी रोज़ से एक सपने में खो गया था |तुम्हारे सपने में |–जैसा की तुम्हारा नाम था –‘सपना | जगती हुई आँखे में तुम और सोते हुए भी बस तुम्हारा ही सपना |अपने नाम के मुताबिक जीवन में कितनी रंगीनिया भर दी तुमने |कहने को तो मैं एक सपने में था ,तुम्हारे जादू में था पर तुमने मुझे असली जीवन में टहलना सिखाया था |3 साल तक ना कोई कविता और ना मन का भटकाव |तुम्हारे होने से म,न की सभी भावनाएं अभिव्यक्ति पा लेती थी ऐसे में कागज पर क्या लिखता ?तुम जीवन की यथार्थ कविता थी और तुम्हारे तन-मन के सौन्दर्य ने ऐसा बांधा कि भटकाव की जगह ही नहीं थी |मुझे गर्व था तुम्हरे सौन्दर्य पर ,तुम्हारे बर्ताव पर ,तुम्हारी निश्छल हंसी पर | तुम्हारा व्यक्तित्व अजीब आकर्षण से भर था |जो तुमसे एक बार मिल लिया वो तुम्हारा होकर रह जाता |

तुम्हारे जाने की खबर जिस-जिसको मिली वो सब स्तब्ध हो गए |चादर बेचने वाला बाबा ,शनिचर दान पाने वाली वो भिखारिन,नानीजी ,अनब्याहे दोस्तों की मम्मियां और ब्याहे दोस्तों की पत्नियाँ ,जब भी मिले तुम्हारा जिक्र आते ही उनकी आँखे पहले भीग गईं| उस रोज़ जो कुछ हुआ अप्रत्याशित था |यूँ तो तुम्हारे मन की निराशा मुझे भी आशंकित करती थी पर विश्वास था की हम साथ-साथ दिल्ली लौटेंगे और तुम स्वस्थ हो जाओगी पर - - - - उस स्त्री को मैं कभी माफ़ नहीं कर सकता जो यमदूत की तरह इस विवाहोत्सव में शामिल हुई और अपने मायाजाल से मेरा सब कुछ तबाह कर दिया | माफ तो मैं तुम्हारे भाई को भी नहीं कर सकता जिसने वासना वसीभूत होकर सच-झूठ को एक कर दिया |उस रोज़ उसने जो अपमान हम दोनों का किया वो माफ करने लायक नहीं हो सकता |पर शायद वो अपमान तुम्हारे लिए असहनीय था |कौन सी ब्याहता स्त्री यह सहने कर पाएगी कि उसके मायके में उसका सबसे प्यारा भाईजिस पर वो सबसे ज़्यादा अभिमान करती है उसका सभी रिश्तेदारों के सामने ऐसा अपमान करेगा वो भी ऐसी स्त्री के लिए जिसका चरित्र जग-जाहिर हो |क्या पता था ये चोट ये अपमान तुम सह नहीं पाओगी|

पर अकेले वे दोषी नहीं हैं |मैं भी हूँ |जिसने खुद से ज़्यादा तुम्हारे मायकेवालों पर यकीन किया |उनकी और तुम्हारी जिद्द के आगे ,तुम्हारी बीमारी को हल्के में लिया और उन पर यकीन कर तुम्हें वहाँ भेज दिया | उस शाम को भी जब इतना कुछ हुआ और तुमनें मेरे घर(गाँव) चलने का आग्रह किया तो तुम्हारे बाकी घर वालों की बात मान और तुम्हारी बीमारी की स्थिति देखते हुए रात में निकलने से मना कर दिया |बिना ये सोचे की तुम पर क्या गुजर रही है?

“हम तेरे शहर में आएं हैं मुसाफ़िर की तरह - - -“गज़ल को सुनते मैं सुबह का इंतजार कर रहा था |मन में ये प्रतिबद्ध लिए की इस चौखट पे अब कभी नहीं लौटना |तुम भी ऐसा ही कह रही थी सबसे रोते हुए| पर तुम्हारे शब्दों की गम्भीरता को मैंने नहीं समझा |

रात को सोते हुए भी तुम्हारी आँखे सावन-भादों बनी रहीं पर मैं जैसे पत्थर हो गया था और बस अपने सम्मान को ठेस लगने के बारे में सोच रहा था

ना तो तुम्हारा माथा सहलाया,ना तुम्हारे दर्द को बाँटा,ना तुम्हारी आँखों में वो विश्वासपूर्वक देखा |दवा देकर दूसरी करवट लेटा और कब आँख लगी पता ही ना चला | रात को 2 बजे तुमने जगा कर पानी माँगा |तुम्हारी माँ को पुकारा,तो तुमने कुछ मीठा भी लाने का आग्रह किया |तुम्हारी माँ से मीठा-पानी लेकर तुम्हें दे दिया और फिर बिना बात किए लेट गया |तुरंत ही नींद आने लगी |अचानक जोर से घरघराहट हुई पर मैंने नींद में अनसुना कर दिया | सुबह उठकर सबके बीच चाय पीने पहुँचा |तुम बिस्तर पर बड़ी तसल्ली से सो रही थी |शायद किसी सपने में खोई |

तुम्हारी बहन चाय लेकर तुम्हारे पास पहुंची |अचानक सारा घर कोहराम से जाग गया |मेरा सपना टूट गया था |शादी की तीसरी सालगिरह से एक हफ़्ते पहले | मुझे फिर भी यकीन था तुम मेरी बनी रहोगी |अपने नाम के मुताबिक मेरे सपनों में सपना बनकर |ऐसा मैंने कई जगह सुना भी था |”मैं” ना सही ”अंश” तो था तुम्हें खींचने के लिए |हमारा 4 माह का बेटा |

पर यहाँ मैंने फिर गलती की |”आत्माएं किसी की नहीं होती - - -“लोगो ने मुझे डरा दिया और मुझे “अंश “की फ़िक्र होने लगी |तुम पर संदेह होने लगा |तुम्हारे भाई ने बड़ी चतुराई से मुझे घाट-पूजा के साथ नारायण-बलि के लिए तैयार कर लिया | उस रोज़ के बाद से तुम मुझे कभी सपने में भी नहीं दिखी |तुम्हारी बहन से शादी के बाद  एक दिन मैंने उसे अपनी व्यथा बताई |एक रोज़ तुमने सपने में उसे जवाब दिया ­– मैं इनसे कभी नहीं मिलना चाहती इन्होनें मेरे साथ बहुत बुरा किया है | मैं नही जानता तुम किस बात से इतनी खफा हो पर इतना जानता हूँ मेरा खुबसुरत सपना हमेशा के लिए टूट चुका है |

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

4 दिसम्बर 2014

 

Views: 872

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2014 at 1:05pm

सोमेश जी

हिन्दी में शोकगीत,या शोक -सस्मरण बहुत कम है  i निराला की सरोज -स्मृति एक अपवाद है I शोक गीत अपनी अतिभावुकता के कारण फैंटेसी बन  जाता है i आप का सस्मरण भी  भी वैसा ही है  i मुझे अच्छा लगा कि आपने अपनी दिवंगता पत्नी की बहन से दूसरा विवाह किया i यह कहानी का एक बहुत अच्छा प्लाट है i आप जरूर लिखें  i शिल्प में नयापन है i वह धीरे धीर और निखरेगा i मेरी शुभ कामनाएं

आपके नव परिवार के लिए और श्रृद्धांजलि आपकी पूर्व पत्नी के लिए i स्नेह i  

Comment by Hari Prakash Dubey on December 4, 2014 at 11:39pm

सोमेश भाई ,सुन्दर लेखन ,पूरी रचना को पढ़ा ,हार्दिक बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"खुद ही अपनी ज़िन्दगी दुश्वार भी करते रहे दोस्तों से गैर सा व्यवहार भी करते रहे धर्म-संकट से बचाना…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी ग़ज़ल में रदीफ़, काफ़िया और बह्र की दृष्टि से प्रयास सधा हुआ है। इसे प्रशंसनीय अभ्यास माना जा…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर , अभिवादन आदरणीय।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"नफ़रतों की आँधियों में प्यार भी करते रहे।शांति का हर ओर से आधार भी करते रहे।१। *दुश्मनों के काल को…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"जय-जय"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"स्वागतम"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"आ. सौरभ सर श्राप है या दुआ जा तुझे इश्क़ हो मुझ को तो हो गया जा तुझे इश्क़ हो..इस ग़ज़ल के…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. नाथ जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. विजय जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया "
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service