For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस इतना मेरा जीवन

बस इतना मेरा जीवन

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

वो ही मेरा सोना-चाँदी

उनसे मेरा तन-मन-धन

आने वाले कल की सूरत

जिनकी रेखा खींच रहा

कल पक के धन्य-धान करेंगी

मैं वो फसलें सींच रहा

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

सुबह मिल अभिवादन करते

मन हो जाता बहुत प्रसन्न

होड़ लगाए बढ़-चढ़ आते

सर बजा दें टन-टन-टन |

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

असेम्बली होते ही होड़ लगाते

 करते बिल्कुल देर नहीं

सर की कुर्सी मैं ले जाऊं

ले जाए ना और कोई

और किसी पेशे में क्या

 पाता इतना प्रेम कोई

मन के सच्चे ,तन के भोले

ये मिट्टी के कच्चे बरतन |

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

पढ़ने की बारी आती तो

मन भारी कर लेते हैं

ना पढ़ने पे ना डांट पिले

 ऐसी लाचारी कर लेते हैं  

सिर चकरा जाता अक्सर

 ऐसे-ऐसे करें प्रश्न |

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

 

करें शरारत अक्सर सारे

पर दूजे की शिकायत लाते हैं

करते आपस में झगड़ा-झगड़ी

और शराफत दिखलाते हैं

चाहे करें खूब लड़ाई

मन में रखते घात नहीं

ये सीधे-सच्चे बच्चे हैं

बड़ों सा इनमें प्रतिघात नहीं

तन इनका फूलों

जैसा मन गंगा सा पावन|

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

सब्जेक्ट की कॉपी पर

पर लगा कर उड़ते हैं

बिंदी में तारे चुनते हैं

 रेखा में चंदा गढ़ते हैं

चित्र अनोखे सुंदर प्यारे

नित-नित करें नये सृजन |

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

पके हुए फल हम सारे

थके हुए बादल हम सारे

बिन सोचें बरसात करें

नव-अंकुर का करें क्षरण

वो हम जैसे देखें दुनियाँ

इस पर अड़े सभी प्रयत्न|

मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

बस इतना मेरा जीवन

 

बचपन में जो हम लौटें

तो खुद को इन-सा पाएंगे

‘मैं’ की जो काई हट जाए

 खुद को उजला पाएंगे

पड़े हुए पत्थर हट जाएँ

तो धाराएं बहें कल-कल |

 मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

 बस इतना मेरा जीवन

 सोमेश कुमार(मौलिक एवं प्रकाशित )

 

 

Views: 549

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on December 10, 2014 at 8:31pm

pdhne aur srhane ke lie sukriya


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:18am

सुन्दर प्रस्तुति है भाई सोमेश कुमार जी।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 3, 2014 at 7:51pm

बचपन में जो हम लौटें

तो खुद को इन-सा पाएंगे

‘मैं’ की जो काई हट जाए

 खुद को उजला पाएंगे

पड़े हुए पत्थर हट जाएँ

तो धाराएं बहें कल-कल |

 मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

 बस इतना मेरा जीवन

सुन्दर चित्र खींचा है आपने ..बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2014 at 6:24pm

वर्णन से पूरा चित्र खिंच जाता है i सुन्दर i  

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:36pm

सुन्दर प्रस्तुति भाई जी //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 12:52pm

 मैं बच्चों में बच्चे मुझमें

 बस इतना मेरा जीवन....बहुत खूब सोमेश भाई ,एक समर्पित शिक्षक को चित्रित कर दिया आपने !

Comment by Shyam Narain Verma on December 1, 2014 at 4:59pm

 सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service