माँ होती तो ऐसा होता
माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा
तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता
माँ होती तो वैसा होता
चलना , फिरना , हसना , रोना ,और खड़े होना पैरो पर
कितने बाते सीखी तुमने लेकिन याद किया क्या पल भर
जिन हाथो की पकड़ के अंगुली तुम रहते थे हरदम आगे
बने सहारा क्या तुम उनका , हार गए वे हाँथ अभागे
माँ है आखिर कैसे कह दे " निकला मेरा सिक्का खोटा "
मात्र बहाना लगता तब ,
जब भी उनको देखा रोता
माँ होती तो ऐसा होता ,
माँ होती तो वैसा होता
जब जब गलती की बचपन में माँ ने ओढ़ लिया सब दोष
कभी चोट जो खाता था तू , माँ खुद करती थी अफ़सोस
पापा तक जो ले जाती थी भूल गया तू उस डोरी को
तेरे सपनो पे क़र्ज़ है उसका भूल गया तू उस लोरी को
तन्हाई में कभी सिरहाने माँ के , आके तू भी सोता
माँ की तरह तू भी ऐसा
फूट फूट न तनहा रोता ,
माँ होती तो ऐसा होता ,
माँ होती तो वैसा होता
अजय कुमार शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
shardindu mukerji ....rachna ke bhav paksha se zyada ...apne rachna ke takniki binduyo pe jo galtiyan ujagar ki uske liye dil se apka shukriya ada karta hoo..sudhar karne ka prayas avshya karoonga .......shyad kuch achha ban gaya ho to use bhi likh dete to mujh nacheez ki hausala afzai hoti ....however .....typing mistakes ke liye dil ke maufi chahoonga ....bindu 5 ke vishaya me punah karbadha kshama yachana karta hoo firbhi yadi koi danda pravdhan hai to ...mai taiyar hoo...... .
अति सुन्दर भाव। बधाई।
rajesh mam ......ye rachna purva me bhi post kar chuka hoo.lekin apka ashish mahi mila .....apke comment se mujhe niji khushi mili ..bahut bahut thanks
चलना , फिरना , हसना , रोना ,और खड़े होना पैरो पर
कितने बाते सीखी तुमने लेकिन याद किया क्या पल भर
जिन हाथो की पकड़ के अंगुली तुम रहते थे हरदम आगे
बने सहारा क्या तुम उनका , हार गए वे हाँथ अभागे
माँ है आखिर कैसे कह दे " निकला मेरा सिक्का खोटा " dr saheb in lines pe bhi kuch ashish mil jata to dhanya hota mai ....
बहुत भाव विह्वल करने वाली प्रस्तुति ,बहुत खूब ..सच कहा जब माँ नहीं होती तब सोचते हैं वो होती तो ये करते वो करते ...
बहुत बहुत बधाई आपको
माँ होती तो ऐसा होता ,
माँ होती तो वैसा होता
जब माँ होती है तब उसका चिंतन कम लोग करते है जब वह नहीं होती तो भावुकता में बह्ते है-
एक प्रयोगवादी कविता है -- अगर कही मैं तोता होता तो क्या होता ?
तो क्या होता तोता होता तो तो ता ता i
" बहुत ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई " |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online