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 हाँ

किसी अज्ञात यात्रा से

लोग यहाँ  आते है

कोई आता है चुपके से दुबक कर

कोई आता है सीने से चिपककर

कोई आता इन्तेजार ख़त्म करने

किसी के आने पर बजते है नगाड़े

ढोल-ताशे   

 

यहाँ आकर

फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा

गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की

परिश्रम गंवाने की कुछ सुस्ताने की

जी भर रोने की मन-मैल धोने की

शांति से सोने की खुद अपने होने की

 

जो अभी यहीं है

उन्हें कही जाना है

किसी से किया हुआ वादा निभाना है

उन्हें इन्तेजार है  उस घड़ी आने की

जब कोई गाड़ी उन्हें ले जायेगी

हो सकता है वहां  जहाँ वह चाहते हों

शायद वहां भी जहाँ नहीं चाहते

 

एक् लम्बा सिलसिला है

आने-जाने वालो को

इसीलिये रहती है यहाँ एक भीड़ बड़ी

जहाँ देखो वही एक लम्बी सी लाइन खडी

मै भी खड़ा हूँ यहाँ जीवन की रेल के

छोटे प्लेटफार्म पर कभी तो आयेगी

नींद से जगाएगी मुझे ले जायेगी 

छुक-छुक रेलगाड़ी   

 

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on December 16, 2014 at 8:25pm
जीवन है ,
कहाँ से आते हैं लोग ,
न जाने कहाँ चले जाते हैं लोग ,
हम भी अभी हैं , कल कहाँ होंगें ,
कौन सी गाड़ी आएगी , और ,
कहाँ , किस प्लेटफॉर्म पर
छोड़ जाएगी , पता नहीं।
जीवन है , यही तो जीवन है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रकट करती रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on December 16, 2014 at 7:31pm

मै भी खड़ा हूँ यहाँ जीवन की रेल के
छोटे प्लेटफार्म पर कभी तो आयेगी
नींद से जगाएगी मुझे ले जायेगी
छुक-छुक रेलगाड़ी
…… सच आपका ये कथन दार्शनिकता की सहज प्रस्तुति है … जीवन सत्य से परिचय कराती इस सुंदर रचना की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी।

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