ग्रीष्म में भी लू गरीबो को ही लगती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
रिक्त उदर जीर्ण वस्त्र छत्र आसमान है
हाथ उनके लगे बिना देश में न शान है
काया कृश सजल नयन दघ्ध ह्रदय करती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
गगनचुम्बी भवनों की नींव में गरीब है.
महानगरों में इनकी बस्ती भी करीब है.
हारे खिलाड़ी सी इनकी शकल दिखती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
सड़क के किनारे देखा लम्बी सी कतार है
कोई नेता आएंगे गूंजे जय जयकार है
नेता की ईज्जत भी दीन-भीड़ करती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्रीमान लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी!
इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देकर आपने मेरा उत्साह बढ़ाया है आदरणीय सोमेश कुमार जी!
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय श्री हरि प्रकाश दुबे जी!
गरीब की कठिनाई से आहत होकर रची सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री जवाहर लाल सिंह जी
वाह ,मजदूरों के यथार्थ पर कितनी सुंदर सम्वेदना प्रस्तुत की है |काश!ये रचना साधन-सम्पन्नों की आत्मा को झकझोरे |
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपको हार्दिक बधाई इस रचना के लिये !
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब, सादर अभिवादन! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री गोपाल नारायण जी, सादर अभिवादन! आपकी उत्साहवर्धक और रचनात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी, सादर अभिवादन! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!
आदरणीय शरद सिंह विनोद जी, सादर अभिवादन! आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online