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नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से

1222 1222 1222 122

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से 

शब-ए-ग़म में नया  किस्सा चलो इक बार फिर से 

तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम  लेगा 

तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से 

किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की 

वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से 

किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज 

यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से 

बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा 

निगलने आग का दरिया चलो इक बार फिर से 

वही गाफ़िल कदम अपने वही तनहा सफ़र फिर 

नई मंज़िल नया रस्ता चलो इक बार फिर से 

फ़लक साहिल तो युग लहरें समय था रेत लेकिन 

हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से 

न सुलझेगी कभी हमसे पहेली ज़िंदगी की 

नई उलझन नया मसला चलो इक बार फिर से 

चुनौती आसमां को दें परों को खोलकर हम 

नई ताकत नई उर्जा चलो इक बार फिर से 

अनय के सामने झुककर बहुत चुप रह लिये हम

इरादा लब  कुशाई का चलो इक बार फिर से 

ज़िया 'खुरशीद' ने बाँटी ज़िगर अपना जलाकर 

नई ग़ज़ले नई भाषा चलो इक बार फिर से 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 1:06pm
आदरणीय खुर्शीद जी कमाल की ग़ज़ल हुई है। एक एक शेर खूब है। रवानी कमाल है। दिल से दाद कुबूल कीजिये। कोई एक अशआर कोट नहीं कर रहा हूँ क्योकिं सब एक से बढ़कर एक। एक अशआर में टाइपिंग त्रुटि हुई है उस पर गिरिराज सर कह चुके है। बधाई
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 31, 2014 at 12:49pm
नमन आपकी लेखनी को आदरणीय! बहुत सुन्दर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 31, 2014 at 12:01pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , क्या रवाँ , क्या खूब सूरत ग़ज़ल कही है , वाह ! दिल से दुआयें और बधाइयाँ निकल रही है , स्वीकार करें ।

एक एक शे र के लिये अलग अलग ।

हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से   -- ये मिसर ध्यान फिर से चाह रहा है ।

कृपया ध्यान दे...

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