२२१ १२२२ २२१ १२२२
महबूब ख़ुदा मेरा ,उल्फ़त ही इबादत है
है दीन बड़ा मुश्किल ,आसान मुहब्बत है
तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर
कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है
ये खून खराबा क्यूं ,ये शोर शराबा क्यूं
मैं किसको झुकाऊँ सिर ,इसमें भी सियासत है
इक सब्ज़ पैराहन पर , है खून के कुछ छीटें
दहशत में लड़कपन है ,नफ़रत की वज़ाहत है वज़ाहत=विस्तार \पराकाष्टा
बारूद की बदबू है ,बच्चों के खिलौनों में
मुँहजोर हुकूमत है ,पुरजोर मुजम्मत है मुजम्मत= निंदा
क्यूं कोई बने हिन्दू ,क्यूं कोई बने मुस्लिम
क्या दीन तराजू है ,क्या धर्म तिजारत है
नापाक इरादों पर क्यूं शर्म नहीं आती
पूछो तो ख़ुदा से ,क्या क़त्ल शराफ़त है
बन्दूक उठाते हो ,मासूम परिंदों पर
तितली के परों पर बम , क्या ख़ूब हिमाकत है
'खुरशीद' के चेहरे पर ,कालिख न उछालो तुम
वो रात कहानी थी , ये सुबह हकीक़त है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
नापाक इरादों पर क्यूं शर्म नहीं आती
पूंछो तो ख़ुदा से ,क्या क़त्ल शराफ़त है........सुन्दर रचना आदरणीय खुरशीद जी , बधाई आपको !
आदरणीय खुरशाद जी बहुत खूबसूरत मुरस्सा ग़जल हुई है बहुत बहुत बधाई पूरी ग़ज़ल के लिये।
इक सब्ज़ पैराहन पर , है खून के कुछ छीटें बस इस मिसरे की तक्ती समझ में नहीं आ रही है।
तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर
कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है -- kya kahne wah
खुर्शीद जी
बहुत उम्दा i एक से बढ़कर एक शेर i बधाई हो i
तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर
कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है ..समाज के वर्तमान परिदृश्य पे लिखे गए सभी अशार बहुत दिल भावन हैं चिंतन के लिए बिबश करते हैं ..झकझोरने वाले इन शेरो के लिए तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय गिरिराज साहब ,मिथिलेश जी ,राहुल डांगी साहब आप सभी का हृदयतल से आभार
१.सातवें शेर का मिसरा-ए-सानी कुछ यूं है -'पूछो तो ख़ुदा से तुम ,क्या क़त्ल शराफ़त है ' राहुल भाई जी ,माफ़ी चाहता हूं 'पूछो' का पूंछो वैसे ही हो गया जैसे आपकी टिप्पणी में 'नहीं' का 'नबीं' तथा 'तुरंत ' का तुरनित हुआ है |ये अच्छा है कि हम पढ़ने के साथ साथ मुद्रण-त्रुटि का प्रूफ सुधार भी करते जायें |अक्सर देखा है कि मुद्रण-त्रुटि टाइपिंग करने वाले की पकड़ में नहीं आती है |सादर
२.आदरणीय गिरिराज साहब ,मिथिलेश जी मिसरे में १२२२ की संगत में 'ख़ुदा से तुम ' है |त्रुटि पर ध्यान दिलाने के लिए आभार
आप सभी इसी तरह स्नेह बनाये रखियेगा | सादर
समाज की हालिया स्थिति पर सभी अशआर बहुत खूब हुये हैं , आपको दिली बधाइयाँ ।
बारूद की बदबू है ,बच्चों के खिलौनों में
मुँहजोर हुकूमत है ,पुरजोर मुजम्मत है
बन्दूक उठाते हो ,मासूम परिंदों पर
तितली के परों पर बम , क्या ख़ूब हिमाकत है -- लाजवाब !! खूब बधाइय़ाँ , आदरणीय खुर्शीद भाई ।
पूंछो तो ख़ुदा से ,क्या क़त्ल शराफ़त है --- ये मिसरा बेबह्र हो गया है , पूंछो को पूछो कर लीजियेगा ।
" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... " |
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