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नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से
शब-ए-ग़म में नया किस्सा चलो इक बार फिर से
तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम लेगा
तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से
किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की
वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से
किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज
यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से
बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा
निगलने आग का दरिया चलो इक बार फिर से
वही गाफ़िल कदम अपने वही तनहा सफ़र फिर
नई मंज़िल नया रस्ता चलो इक बार फिर से
फ़लक साहिल तो युग लहरें समय था रेत लेकिन
हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से
न सुलझेगी कभी हमसे पहेली ज़िंदगी की
नई उलझन नया मसला चलो इक बार फिर से
चुनौती आसमां को दें परों को खोलकर हम
नई ताकत नई उर्जा चलो इक बार फिर से
अनय के सामने झुककर बहुत चुप रह लिये हम
इरादा लब कुशाई का चलो इक बार फिर से
ज़िया 'खुरशीद' ने बाँटी ज़िगर अपना जलाकर
नई ग़ज़ले नई भाषा चलो इक बार फिर से
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज सर , आपके आशीर्वाद के साये-साये चलने वाले को आप क्षमा-प्रार्थना की धूप से मत झुलसाइए | मैं अभी ग़ज़ल साधना के प्रथम सोपान पर हूं |यहाँ इस्लाह और तनकीद ऊपर से आया सहारे का हाथ होता है , विन्रम निवेदन है आप हाथ बढ़ाये रखियेगा | सादर क्षमापार्थी -खुरशीद
आदरणीय गोपालनारायण सर ,आपका आशीर्वाद मेरे हौंसलों को नए पर देता है ,स्नेह बनाये रखियेगा |सादर
आदरणीय शकूर सर
हार्दिक आभार |आपको ग़ज़ल पसंद आई , मेरी मेहनत सफल हो गई |सादर
फ़लक साहिल तो युग लहरें समय था रेत लेकिन
हुई सोच अपनी भी क़तरा चलो इक बार फिर से---------anivarchneey I ati sundar I
जनाब खुर्शीद साहब लाजवाब ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको इस शानदार ग़ज़ल के लिये
आदरणीय खुर्शीद भाई , सबसे पहले मै आपसे क्षमा चाहता हूँ , लापरवाही से आपकी गज़ल पढ़ के प्रतिक्रिया दे दिया । लापरवाही इसलिये कि मैने खुद अपनी गज़ल मे अलिफ वस्ल का उपयोग किया है । मुझे दुख है कि आपको मेरी वज़ह से इतनी ज़हमत उठानी पड़ी । पुनः क्षमाप्रार्थी हूँ । और लाजवाब ग़ज़ल के लिये पुणः बधाई प्रेषित कर रहा हूँ ।
आदरणीय गिरिराज सर ,राहुलजी , मिथिलेश जी , सोमेश भाई ,आदरणीय विजयशंकर साहब ,हरिप्रकाश दुबे जी ,आप सभी का सादर आभार |आप सभी का स्नेह उतरोत्तर उत्कृष्ट लेखन को प्रोत्साहित करता है |मेरी समझ के हिसाब से आलोचित मिसरे में -
१. 'हुई सोच+ अपनी ' अलिफ़-वस्ल के कारण हुई सोचप -नी होने से १२-२२ (वतद+फासला) की तक्ती हो रही है |
उदाहरण - शायद उनका आखरी हो ये सितम (शायदुनका आखरी हो ये सितम =२१-२२ २१-२२ २१-२ )
२. 'नी भी क़तरा' में "नी " में हुरुफे-इल्लत याय(ई ) की मात्रा गिरकर लाम (लघु) हुई है, अतः नि भी -क़तरा =१२-२२ (वतद+फासला ) की तक्ती हो रही है | उदाहरण - मुझे अपनी शामों से इक शाम देदो ( मुझे अप नि शामों स इक शा म देदो =१२-२ १२-२ १२-२ १२-२)
शायद मैं गलत सीख रहा होऊं , इसीलिए मंच के अग्रजों की राय पुनः चाहता हूं , ताकि सही तथ्य सभी तक पहुँचे |
सादर
किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की
वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से ...आदरणीय खुर्शीद जी सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !
सुंदर गज़ल ,भाई जी
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